SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८३ उसने जाल रचकर सनत्कुमार पर बलात्कार का अभियोग लगाया है। महाराज ईशानचन्द्र को अनंगवती की बातों पर विश्वास हो जाता है और वे विनयन्धर को बुलाकर सनत्कुमार की हत्या कर देने का आदेश देते हैं। इस प्रकार इस कथानक रूढ़ि ने कथानक की गतिविधि को निश्चित दिशा में मोड़ा है। ७--कवि कल्पित कथानक रूढ़ियां कथासाहित्य में लेखक कुछ ऐसे साधारण अभिप्राय--माइनर मोटिन्स का प्रयोग करता है, जो कलाकार को अपनी कल्पना की उपज प्रतीत होते हैं। कुशल कथाकार कल्पना का आश्रय लेकर कुछ मौलिक उद्भावनाएं करता है, जिनकी उपयोगिता कथारस के सृजन के लिए होती है। यद्यपि यह सत्य है कि ये साधारण अभिप्राय भी परम्परा से ही प्राप्त होते हैं। नवीन अभिप्रायों का प्रयोग तो कम ही हो पाता है। हरिभद्र की प्राकृत कथाओं में निम्नांकित इस श्रेणी की कथानक रुढ़ियां उपलब्ध होती है:-- (१) सिंहल द्वीप की यात्रा और विपत्ति--श्रावस्ती के नरेश की कन्या सिंहल द्वीप की यात्रा करती है, यान भंग होने से विपत्ति, पृ० ३९९।। (२) उजाड़ नगर की प्राप्ति--यान भंग होने पर तटवर्ती उजाड़ नगर में धन पहुंचा। (३) जलयान का भंग होना और काष्ठफलक की प्राप्ति द्वारा प्राणरक्षा, स० पृ० २५३, ४०४, ४०८, ४२६, ४४६, ५४० । (४) चित्रदर्शन या गुण श्रवण द्वारा आकर्षण--गुणचन्द्र रत्नवती के चित्र को देखकर आकर्षित होता है। (५) नगर के स्त्री-पुरुषों के सामान्य वर्णन, ९, ७५, १६२, २३४ । (६) राजसभा में आश्चर्योत्पादक वस्तु के सम्बन्ध में प्रश्न १/४५ । (७) शरदोत्सव, वसन्तोत्सव की तैयारियां और इनमें नायक-नायिका का दर्शन, २७८-७९। (८) विपरीत परिणाम--प्रतिनायक नायक को मारना चाहता है, पर स्वयं मर जाता है। (९) जंगली हाथी का अनुधावन और अभीष्ट की प्राप्ति--हाथी से रक्षा करने __ के लिए धनदेव बड़ के वृक्ष पर चढ़ता है और वहां रत्नावली पाता है। (१०) यात्रा के समय विचित्र दृश्य और विरक्ति--अजगर कुरर को, कुरर सांप ___को और सांप मेढ़क को भक्षण कर रहा था, इस दृश्य से विरक्ति। (११) संयोग और भाग्य की योजना--धनदेव को मरने के लिए समुद्र में डाला, पर खारे जल द्वारा व्याधि का निवारण, पृ० २५३ । (१२) विरोधी शत्रु को कार्यसिद्धि के लिए मित्र बनना--जालिनी, शिखि कुमार __ को मित्र बनाकर हत्या करती है। (१३) अकस्मात् उपकारी की प्राप्ति--कापालिक के वेश में महेश्वरदत्त का मिलन। (१४) चित्रपट द्वारा वरान्वेषण, पृ० ७४३ । (१५) रहस्योद्घाटन--अर्जुन के मरने का रहस्य बारह वर्ष के बाद पुरन्दर द्वारा उद्घाटित, सुसंगता का रूप धारण करने वाली व्यन्तरी का वीतरागी की प्रतिमा के उल्लंघन द्वारा उद्घाटित। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy