SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૦૬ १०४) । (३) दृढ़ संकल्प (द० हा० गा० ८१, पृ० ( ४ ) सुबन्धु द्रोह (द० हा० गा० १७७, पृ० १८२ ) । (५) तीन कोटि स्वर्ण मुद्राएं (द० हा० गा० १७७, पृ० १८५) । (६) चार मित्र (द० हा० गा० १८८-- १६१, पू० २१४ ) । (७) इन्द्रदत्त ( उप० गा० १२, पृ० २८ ) । (८) धूर्तराज ( उप० गा० ८६ ) । ( ६ ) शत्रता ( उप० गा० ११७, पृ० ८६) । (१०) नन्द की उलझन ( उप०गा० १३६, पृ० १०६ ) । "उचित उपाय" लघु कथा में पड़ोसी राजकुल के गन्धर्वो के उपद्रव को शान्त करने के लिए एक वणिक् ने अपने यहां एक व्यन्तर का मन्दिर स्थापित किया । जिस समय गन्धर्व लोग गाने का अभ्यास करते, उस समय उस मन्दिर में बड़े जोर-जोर से ढोल, बांसुरी, झांझ आदि वाद्यों को बजाया जाता, जिससे उनके गाने में विघ्न उत्पन्न होता । नित्य प्रति होने वाले अपने इस विघ्न की शिकायत राजा के यहां की गई। राजा ने दोनों ओर की बातें सुनकर वणिक् के पक्ष में अपना निर्णय दिया । अतः वणिक् का उचित उपाय कार्यकारी सिद्ध हुआ । कथा में प्रधानपात्र वणिक् के कार्यों की श्राद्यन्त व्य. प्ति है, अतः कार्य और घटना का प्राधान्य रहने से ही यह कथा चमत्कार उत्पन्न करती हैं । " एक स्तम्भ का प्रासाद" शीर्षक कथा में समस्त घटना और कार्यों के विकास का आधार यह एक स्तम्भ का प्रासाद ही है । श्रेणिक के प्रदेश से अभयकुमार ने एक स्तम्भ पर आधारित एक राजभवन बनवाया, जिसके समक्ष सदा फल देने वाले वृक्षों का उद्यान था । इस उद्यान में से एक मातंग अपनी स्त्री के दोहद को पूर्ण करने के लिए अपनी चतुराई और विद्याबल से ग्राम तोड़ कर ले जाता था । वाटिका के रक्षक उस चोर का पता लगाने में असमर्थ थे, अतः प्रभयकुमार को यह कार्य सौंपा गया । श्रभयकुमार न े एक सार्वजनिक सभा कर युक्ति द्वारा चोर को पकड़ लिया और राजा को सुपुर्द किया। इस प्रकार कथा में घटना ही जिज्ञासा और कुतूहल का आधार हैं । इसमें देवी घटनाओं, संयोगों और प्रतिप्राकृत प्रसंगों का सहारा भी लिया गया है । यक्ष ने प्रासाद बनाया, और उसी ने इस प्रकार के प्रद्भुत उपवन को बनाया । मातंग भी मन्त्र विद्या का जानकार है और श्रेणिक उससे मन्त्र विद्या सीखता है, आदि बातें श्रतिप्राकृतिक ही हैं । "सुबन्धु द्रोह" में नन्द के अमात्य सुबन्धु की चाणक्य के साथ शत्रुता है, वह अपने रहस्यमय और विलक्षण कार्यों के द्वारा उसे परास्त करने की चेष्टा करता है । "तीन कोटि स्वर्ण मुद्राएं" में घटना का चमत्कार है । एक लकड़ीहारा दीक्षित हो जाता है, लोग उसे " लकड़ीहारा साधु" कहकर चिढ़ाते हैं । श्रभयकुमार उसके त्याग का महत्व दिखलाने के लिए तीन करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का ढेर लगा देता है और घोषणा करता है कि जो श्रग्नि, जल और नारी इन तीनों का त्याग करे, वही इन मुद्राओं को ले सकता है । नागरिकों ने सोचा- जब उक्त तीनों वस्तुएं ही नहीं तो फिर इन स्वर्ण मुद्राओं का कौन-सा उपयोग है? अतः सभी चुप रहे। इस प्रकार प्रभयकुमार ने उक्त घटना द्वारा त्याग का महत्व लोगों के समक्ष प्रकट किया। "चार मित्र" में उन चार मित्रों की कथा है, जो अपनी-अपनी कार्य कुशलता द्वारा जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं । इनकी विलक्षण प्रतिभा का कौशल नाटकीय शैली में अभिव्यंजित हुआ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy