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________________ १७७ " इन्द्रदत्त" कथा में राजा इन्द्रदत्त के प्रेम व्यापार और उसके पुत्र सुरेन्द्रदत्त के राधावेध की मनोरंजक घटना वर्णित है । कथा में श्राद्यन्त घटना का घनत्व ही चमत्कार का कारण है । " धूतंराज" में एक धूर्त द्वारा अपनी चतुराई और धूर्तता से एक ब्राह्मण की स्त्री को हड़प लेने की घटना वर्णित है । "शत्रुता " में वररुचि और शकटाल इन दोनों बुद्धिजीवियों की शत्रुता का अंकन है । वररुचि ने अपनी चालाकी द्वारा शकटाल को मरवा दिया। शकटाल के पुत्र क्षेपक ने वररुचि से बदला चुकाया । कथा में श्राद्यन्त दाव-पेंच का व्यापार निहित है । " नन्द की उलझन " कथा का श्रारम्भ विलास से और अन्त त्याग से होता है | प्रान्त कार्य-व्यापारों का तनाव है । नन्द साधु हो जाने पर भी अपनी पत्नी सुन्दरी का ही ध्यान किया करता है । रोमान्स उसके जीवन में घुला मिला है । नन्द का भाई अपने कई चमत्कारपूर्ण कार्यों के द्वारा नन्द को सुन्दरी से विरक्त करता है । हरिभद्र की कार्य और घटना प्रधान कथाओं में घटनाओं के चमत्कार के साथ पात्रों के कार्यों की विशेषता, आकर्षण और तनाव आदि भी हैं । यों तो ये कथाएं कथारस के उद्देश्य से नहीं लिखी गयी हैं । लेखक टीका के विषय का उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण करना चाहता है अथवा उपदेश को हृदयंगम कराने के लिए कोई उदाहरण उपस्थित करता है, तो भी कथातत्व का समीचीन सन्निवेश है। हां, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इन लघु दृष्टान्त कथानों में वह शैली और घटनातन्त्र नहीं हैं, जिसकी आवश्यकता विशुद्ध कथा साहित्य को रहती है । चरित्र प्रधान कथाओं में घटना, परिस्थिति, वातावरण आदि के रहने पर भी चरित्र को महत्व दिया गया है । इन कथाओं में चरित्र का उद्घाटन पात्रों को परिस्थितियों में डाल कर किया है । चरित्र प्रधान निम्न कथाएं हैं: K (१) शील परीक्षा (द०हा०गा० ७३, पृ० ९२ ) । २०, पृ० ३४) । ३० - ३४, पृ० ४० ) । ११४, पृ० ८४) । ( २ ) सहानुभूति (द० हा० गा० ८७, पृ० ११४) । (३) विषयासक्ति (द०हा० गा० १७५, पृ० १७७ ) । (४) कान्ता उपदेश (द० हा० गा० १७७, पृ० १८८ ) । (५) मूलदेव ( उप० गा० ११, पृ० २३) । (६) विनय ( उप० गा० (७) शीलवती ( उप० गा० ( ८ ) रामकथा ( उप० गा० (१) वज्रस्वामी ( उप० गा० (१०) गौतमस्वामी ( उप० गा० १४२, पृ० (११) आर्य महागिरि ( उप० गा० २०३ - २११, पू० १५६ ) । ( १२ ) आर्य सुहस्ति ( उप० गा० २०३ - २११, पृ० १५८ ) । (१३) विचित्र कर्मोदय ( उप० गा० २०३ - २११, पृ० १६० ) । (१४) भीम कुमार ( उप० गा० २४५ - २५०, पृ० १७५) । (१५) रुद्र ( उप० गा० ३६५ -- ४०२, पृ० २२७) । १४२, पृ० १२-२२ एडु० Jain Education International ११५ ) । १२७) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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