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________________ २०८ : आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन पांच समितियां: ___ अर्थ-'समिति' शब्द के लिए आचारांग में समिए 'या' समिओ शब्द का प्रयोग हुआ है । 'समिअ' शब्द 'सम्' उपसर्ग पूर्वक 'इण्' गतो धातु से बना है। सम् का अर्थ है-सम्यक् प्रकार से और इण का अर्थ गति या प्रवृत्ति है। अतः 'समिति' का अर्थ हआ-'सम्यग इति प्रवृतीति समितिः' अर्थात् सम्यक् प्रवृत्ति । इस प्रकार आचारांग में समिए 'या समिअ' पद का प्रयोग सम्यक् प्रकार से गति या प्रवृत्ति करने के अर्थ में हुआ है। दूसरे शब्दों में इसका अर्थ अच्छी तरह से जाना या प्रवृत्ति करना होता है। सच्चा श्रमण समिति के पालन करने में अन्तर्मुखी हो जाता है । वह समिति, गुप्ति, संयम, तप, संवर आदि के सेवन से मुक्त होकर आत्मा को भावित करता हआ विचरता है । ये समितियाँ महाव्रतों की रक्षा एवं पालन में सहायक होने से श्रमणाचार का आवश्यक अंग मानी गई हैं। अहिंसा व्रत की ५ भावनाओं के अन्तर्गत भी समितियों का विवेचन किया गया है। इस प्रकार समितियाँ ५ हैं-ईर्यासमिति, भाषा-समिति, एषणा समिति, आदाननिक्षेपण समिति और परिष्ठापनिका समिति । (१) ईर्या समिति : ईर्या समिति का सम्बन्ध गति या गमनागमन से है । ईर्या का अर्थ है-चलना । अतः चलने फिरने में सम्यक प्रकार से प्रवृत्ति करना ही ईर्यासमिति है । श्रमण को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने-आने की आवश्यकता पड़ने पर जीवों की रक्षा करते हुए विवेकपूर्वक गमन करना चाहिए। आचारांग में कहा गया है कि ईर्या समिति से युक्त सच्चा निर्ग्रन्थ ही मुनि है। विवेक या सावधानी पूर्वक गमन करने वाला मुनि पापकर्म का बन्धन नहीं करता ।१ बौद्ध परम्परा में भी एतद् विषयक विवेचन मिलता है । बौद्ध भिक्षु भी अपनी परम्परा के नियमों के अनुसार चलता है। श्रमण-श्रमणी को साधनामय जीवन में ग्रामानुग्राम विहार करना पड़ता है। इसी कसौटी पर उनका व्यक्तित्व निखरता है। वह आठ महीने निरन्तर पाद-विहार करता है और चार महीने एक स्थान पर स्थिर वास करता है। मुनि आठ महीनों में स्व-कल्याण करते हुए अपने सदुपदेशों से लोगों को चारित्रिक विकास की शिक्षा देते हुए पद-यात्रा करता रहता है । आचारांग में ईर्या समिति से सम्बन्धित अनेक नियम प्रस्तुत किये गये हैं। वे इस प्रकार हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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