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________________ आचाराङ्ग का नैतिक मनोविज्ञान : १२३ 1 अपना पृथक्-पृथक् अर्थ है परन्तु ये सभी शब्द परस्पर सापेक्ष हैं । प्रत्येक का शब्दार्थ निम्न है - 'मोह' राग की ही उत्कट अवस्था है । द्वेष, राग का प्रतिपक्षी है और किसी के प्रति राग होने पर ही अन्य के प्रति द्वेष होता है । अतः मूल में राग ही है । अनायास द्वेष नहीं होता है अतः दुःखों से मुक्त महावीर के लिए 'वीतरागी' शब्द का प्रयोग किया गया है । कषाय - आचाराङ्गनिर्युक्ति में कहा है कि संसार का मूल कर्म है और कर्म का मूल कषाय है । ' ' कषाय' शब्द 'कष और 'आय' दो शब्दों योग से बना है । यह जैन मनोविज्ञान का पारिभाषिक शब्द है । 'कष' का अर्थ है संसार अथवा जन्म-मरण और 'आय' का अर्थ है लाभ | कषाय वह है जिससे संसार की अभिवृद्धि होती है अथवा 'आत्मानं कषयतीति कषायः' जो आत्मा को कसते हैं वे कषाय हैं । दूसरे शब्दों में, जिनके कारण आत्मा को बार-बार जन्म-मरण के चक्र में पड़ना पड़ता है उन्हें कषाय कहा जाता है । ये मनोवृत्तियां आत्मा को कलुषित बना देती हैं, इसलिए इन्हें कषाय कहा गया है । आधुनिक मनोवैज्ञानिक शब्दावलो में इन्हें आवेगात्मक अवस्थाएँ कह सकते हैं । जैन परम्परा में इन आवेगों की दो कोटियाँ मानी गई हैं- तीव्र और मन्द । तीव्र या उग्र आवेग को कषाय और मन्द आवेग को 'नो - कषाय' कहा गया है । व्याख्याकारों ने तीव्रता और मन्दता के आधार पर क्रोध, मान, माया और लोभ-इन चार कषायों को भी चार-चार भागों में वर्गीकृत किया है तीव्रतम, तीव्रतर तीव्र और मन्द । इस तरह चारों के सोलह भेद हैं । पारिभाषिक शब्दावली में तीव्रतम कषाय को अनन्तानुबन्धी, तीव्रतर कषाय को अप्रत्याख्यानीय, तीव्र कषाय को प्रत्याख्यानीय और मन्द कषाय को संज्वलन कषाय कहा गया है ।" आचाराङ्ग टीका में चारों कषायों के स्वरूप, लक्षण, उनकी स्थिति आदि के सम्बन्ध में भी विवेचन उपलब्ध होता है । " कषायों को उत्तेजित ( उद्दीपित ) करने वाली मनोवृत्तियों को 'नो कषाय' कहा जाता है । ये सदा कषायों के साथ रहती हैं एवं उन्हें उत्प्रेरित करती रहती हैं । इन्हें कषाय प्रेरक भी कहा जाता है । नोकषाय का तात्पर्य है - अल्प कषाय । नो- कषाय नौ हैं - हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा (घृणा) स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद । यद्यपि आचारांग में इनके सम्बन्ध में कहीं एक साथ विवेचन उपलब्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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