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________________ संगठनात्मक व्यवस्था एवं दण्ड-प्रक्रिया : १४१ तुलना जैन एवं बौद्ध दोनों धर्मों में भिक्षुणियों को भिक्षुणी-पद प्राप्त करने के पहले नियमों का सम्यकरूपेण ज्ञान प्राप्त करना पड़ता था। जैन भिक्षुणी-संघ में क्षुल्लिका के रूप में तथा बौद्ध भिक्षुणी-संघ में श्रामणेरी तथा शिक्षमाणा के रूप में वे नियमों का ज्ञान प्राप्त करतो थीं। दोनों संघों में प्रत्तिनी का मुख्य कर्त्तव्य अपनी शिष्याओं को नियमों का ज्ञान प्राप्त कराना तथा उन्हें भिक्षुणी-पद की दीक्षा प्रदान करना था। जैन संघ की संगठनात्मक व्यवस्था में आचार्य तथा उपाध्याय के पदों पर केवल भिक्ष ही अधिष्ठित हो सकता था--कोई भिक्षुणी नहीं। जैन भिक्षणी-संघ में प्रवत्तिनी तथा गणिनी का पद सर्वोच्च होता था। बौद्ध भिक्षणी-संघ की संगठनात्मक व्यवस्था में उपाध्याया अथवा प्रवत्तिनी का पद सर्वोच्च था। प्रवत्तिनी को ही उपाध्याया कहा गया है । जैन संघ क समान बौद्ध संघ में भी सर्वोच्च पद भिक्षुओं के लिए ही सुरक्षित थे। ___ दोनों भिक्षुणी-संघों को संगठनात्मक व्यवस्था का एक क्रमिक विकास परिलक्षित होता है। प्रारम्भ में संघ में दीक्षित होने वालो प्रत्येक नारी को 'आर्या' अथवा "भिक्षुणी" के नाम से जाना जाता था। परन्तु संघ में नारियों की संख्या में वृद्धि होने के कारण तथा प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाये रखने के लिए दोनों संघों में क्रमशः अनेक पदों का सृजन हुआ। जैन संघ में दण्ड-प्रक्रिया ___ संघ की व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए तथा नियमों को दृढ़ता से स्थापित करने के लिए दण्ड की व्यवस्था की गयी थी । दण्ड के भय से भिक्षु तथा भिक्षुणियाँ नियमों का अतिक्रमण नहीं करेंगे, यह विश्वास किया गया था। अपराध करने पर उसके निवारण के लिए प्रायश्चित्तों का विधान था। जैन धर्म के अनुसार दण्ड अथवा प्रायश्चित्त के दो प्रमुख भेद हैं: (१) उद्घातिक प्रायश्चित्त (२) अनुद्धातिक प्रायश्चित्त जो प्रतिसेवना लघु प्रायश्चित्त से सरलता से शुद्ध की जा सके, उसे उद्घातिक प्रायश्चित्त कहते हैं तथा जो प्रतिसेवना गुरु प्रायश्चित्त से कठिनता से शुद्ध की जा सके-उसे अनुद्धातिक प्रायश्चित्त कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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