SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भिक्षुणियों के शील सम्बन्धी नियम : १२१ ढीले होकर कहीं गिर न पड़ें, अतः इन्हें सूत से कसकर बाँधने को सलाह दी गयी थी। भिक्षु-भिक्षुणियों का परस्पर अशिष्ट हास-परिहास करना सर्वथा निषिद्ध था। कुछ षड्वर्गीय भिक्षुओं द्वारा भिक्षुणियों के ऊपर कीचड़ का पानी (कद्दमोदक) डालने तथा उन्हें अपने उरु (जांघ) तथा जननेन्द्रिय (अङ्गजात) दिखाने का उल्लेख प्राप्त होता है, किन्तु उसे निन्दित आचरण कहा गया था । भिक्षुणियों को यह निर्देश दिया गया था कि वे ऐसे भिक्ष की वन्दना न करें। ऐसा भिक्ष "अवन्दिय" कहलाता था। इसी प्रकार भिक्षुणी यदि भिक्षु के ऊपर कीचड़-पानी डालती थी या अपने शरीर का कोई अंग दिखाती थी तो ऐसी भिक्षणी को उपदेश से वंचित कर देने का विधान था । इस प्रकार स्पष्ट है, अशिष्ट आचरण किसी भी दशा में निन्दनीय था। भिक्षु-भिक्षुणियों के पारस्परिक सम्बन्धों के अति-विकसित होने पर अनेतिक आचरण सम्भव थे-अतः इसके निराकरण का प्रयत्न किया गया था। ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है कि कुछ भिक्षुणियाँ भिक्षु मोलियफग्गुण को निन्दा सुनकर कुपित हो जाती थीं तथा भिक्षु मोलिय भी भिक्षुणियों की निन्दा सुनकर कुपित हो जाते थे। एक अवसर पर बुद्ध ने भिक्षु मोलियफग्गुण को फटकारा तथा कहा कि इससे राग-द्वेष की वृद्धि होती है। भिक्षुणियों के द्वारा पुरुष-लिंग (पुरिसव्यंजन) को देखना निषिद्ध था। श्रावस्ती में सड़क पर पड़े हुए एक नग्न मृतक के पुरुषलिंग को देखने पर बुद्ध ने भिक्षुणियों को फटकारा था तथा ऐसा करना निषिद्ध ठहराया था। भिक्षुणियों को सुन्दर लगने के लिए माला धारण करने तथा सुगंधित उबटन, तेल आदि लगाने की अनुमति नहीं थी । इसी प्रकार वह गृहस्थ स्त्रियों के द्वारा पहने जाने वाले आभूषण को भी धारण नहीं कर सकती थी। सुन्दरता के लिए उन्हे लम्बा कमरबन्द धारण करना अथवा कमरबन्द में पूछ लटकाना भी निषिद्ध था।" इसी प्रकार रंग-विरंगे वस्त्र १. चुल्लवग्ग, पृ० ३९०-९१. २. मज्झिम निकाय, ११२१. ३. चुल्लवग्ग, पृ० ३८९. ४. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाचित्तिय, ८६-८७. ५. चुल्लवग्ग, पृ० ३८६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy