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________________ १२० : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ (धुत्ता दुसेन्ति)' । उपयुक्त उपाश्रय (विहार) न प्राप्त होने पर उन्हें क्या निर्देश दिये गये थे. इसका बौद्धसंघ में स्पष्ट उल्लेख नहीं प्राप्त होता । सम्भवतः ऐसी परिस्थिति में उन्हें स्वयं ही परस्पर एक दूसरे की रक्षा करने की शिक्षा दी गई होगी, इसीलिए उन्हें अकेले रहने अथवा अकेले यात्रा करने का निषेध किया गया था। भिक्षुणियों के शील-सुरक्षार्थ कभी-कभी व्यवस्थित नियमों में भी परिवर्तन करना पड़ता था। शिक्षमाणा को उपसम्पदा प्राप्त करने के लिए भिक्ष तथा भिक्षणी दोनों संघों के समक्ष स्वयं उपस्थित होकर याचना करनी पड़ती थी। परन्तु भिक्षु-संघ यदि दूर हो तथा उपसम्पदा प्राप्त करने के लिए शिक्षमाणा के स्वयं वहाँ जाने पर शील-भंग का भय हो तो किसी योग्य भिक्षुणी को दूती बनाकर भी भिक्षु-संघ से उसके लिए याचना की जा सकती थी। काशी की गणिका अडढकाशी को भिक्षुणी बनने के लिए दूती भेजकर ही उपसम्पदा प्राप्त करनी पड़ी थी। ___ यात्रा, भिक्षा-गवेषणा आदि के समय भिक्षुणी को अपने वस्त्रों पर विशेष ध्यान रखना पड़ता था। बिना कंचुक (असंकच्छिका) गाँव में प्रवेश करने पर उन्हें पाचित्तिय का दण्ड लगता था। क्योंकि बिना कंचुक के भिक्षुणी के खुले अंगों को देखकर दुराचारी जनों में दुर्भावना उत्पन्न हो सकती थी। गृहस्थ उपासक के यहाँ जाते समय उन्हें अपने शरीर को पूरी तरह ढंककर जाने का निर्देश दिया गया था। सेखिय नियमों में उन्हें यह शिक्षा दी गयी थी कि गृहस्थों के यहाँ संयमपूर्वक, तथा शरीर के किसी अंग को अनावश्यक रूप से हिलाते हुए न जाँय ।५।। __ ऋतुमती भिक्षुणियों (उतुनियो भिक्खुनियो) के लिए कुछ अन्य वस्त्रों का विधान किया गया था, क्योंकि असावधानी के कारण भी रजस्वला काल में यदि वस्त्र पर रक्त के धब्बे दिखाई पड़ जाय, तो बदनामी का डर था । अतः रजस्वला काल में भिक्षुणी को आवसत्थचीवर तथा अणिचोलक नामक वस्त्रों को धारण करने का निदश दिया गया था। ये वस्त्र १. चुल्लवग्ग, १० ३९९. २. वही, पृ० ३९७-९९. ३. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाचित्तिय, ९६. ४. पाचित्तिय पालि, पृ० ४८०. ५. पातिमोक्ख, भिक्खुनी सेखि य, १-२६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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