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________________ भिक्षुणियों के शोल सम्बन्धी नियम : ११९ था । इसी प्रकार बिना संघ या गण के पूछे यदि भिक्षुणी अपने गुह्यस्थान के फोड़े को चिरवाती या धुलवाती थी, तो उसे पाचित्तिय का दण्ड दिया जाता था । इस प्रकार स्पष्ट है कि बौद्ध दण्ड-व्यवस्था में काम सम्बन्धी ही अनेक गुरुतर अपराध माने गये थे, जिनके करने पर भिक्षुणी के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था थी । हम देखते हैं कि भिक्षुणियों के काम सम्बन्धी अपराधों को पाराजिक, संघादिसेस तथा पाचित्तिय इन तीन प्रमुख वर्गों में रखा गया था तथा अपराध की गुरुता के अनुसार ही उन्हें दण्ड प्रदान किया जाता था । ऐसे अपराध, जिनके करने से भिक्षुणी सद्धर्म से तुरन्त च्युत हो सकती थी या उसका शील भंग हो सकता था - पाराजिक तथा संघादिसेस की कोटि में रखे गये थे । ऐसे अपराध, जिनके करने से केवल काम- सुख प्राप्त होता था, कामोत्तेजना उत्पन्न होती थी, परन्तु जिनमें मैथुन सेवन नहीं था, नरम दण्ड की कोटि में रखे गये थे । इस प्रकार बौद्धाचार्यों ने भिक्षुणी को काम सम्बन्धी अपराधों से विरत रहने की सलाह दी थी तथा साथ ही कठोर दण्ड का भय भी दिखाया था । उपर्युक्त पाराजिक, संघादिसेस तथा पाचित्तिय के अपराध पातिमोक्ख नियम के अन्तर्गत् आते थे । इन पातिमोक्ख नियमों की उपोसथागार में प्रत्येक पन्द्रहवें दिन वाचना होती थी । वाचना के समय ही भिक्षुणी को अपने अपराधों को बताना पड़ता था तथा अपराध सिद्ध हो जाने पर संघ द्वारा दिये गये दण्ड को स्वीकार करना पड़ता था । इसके अतिरिक्त वर्षावसान के पश्चात् प्रत्येक भिक्षुणी को प्रवारणा करनी पड़ती थी, जिसमें भिक्षु तथा भिक्षुणी दोनों संघों के समक्ष उसे दृष्ट, श्रुत तथा प· शंकित दोषों की आलोचना करनी पड़ती थी । 3 इन पातिमोक्ख नियमों के अतिरिक्त भी भिक्षुणियों के शील-सुरक्षार्थं अनेक नियमों का प्रतिपादन किया गया था । भिक्षुणी को अकेले यात्रा करने का निषेध था ही, उन्हें अरण्यवास करने से भी मना किया गया था, क्योंकि एकान्त पाकर दुराचारी पुरुष उन पर बलात्कार कर सकते थे १. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाचित्तिय, ११-१४. २ . वही, ६०. ३. वही, ५७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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