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________________ ( १० ) खंडागमको प्रस्तावना पुस्तक ५, पृ. २२२ २६. शंका - यहां अपगतवेदविषयक शंका और उसके समाधान से विदित होता है कि द्रव्य स्त्रीके भी अनिवृत्तिकरणादि गुणस्थान हो सकते हैं। क्या यह ठीक है ? ( नेमीचंद रतनचंदजी, सहारनपुर ) समाधान- देखो ऊपर नं. १६ का शंका-समाधान | - पुस्तक ५, पृ. ३०३ २७. शंका- यहां सूत्र ९५९ में स्त्रीवेदियों तथा सूत्र १८८ में नपुंसकवेदियों में अपूर्वकरण व अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती उपशम सम्यग्दृष्टियों की अपेक्षा जो क्षायिक सम्यग्दृष्टियों को कम बतलाया है वह किस अपेक्षासे है, क्योंकि, सूत्र १६० १६१ व १८९-१९० में उपशामकोंकी अपेक्षा क्षपकों का प्रमाण संख्यातगुणा कहा है । और उपशमश्रेणीपर चढ़नेवाले औपशमिक एवं क्षायिक सम्यग्दृष्टि दोनों हैं जब कि क्षपक श्रेणी चढ़नेवाले क्षायिक सम्यग्दृष्टि ही हैं । अतएव औपशमिक सम्यग्दृष्टियों की अपेक्षा क्षायिकसम्यग्दृष्टियों का प्रमाण अधिक होना चाहिये था ? नेमीचंद रतनचंदजी, सहारनपुर ) समाधान - स्त्रीवेदी व नपुंसकवेदी अपूर्वकरण एवं अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती जीवों में क्षायिक सम्यग्दृष्टियों की कमीका कारण उनका अप्रशस्त वेद है । अप्रशस्त वेदके उदय सहित जीवोंमें दर्शनमोहका क्षय करनेवालों की अपेक्षा उसका उपशम करनेवाले ही अधिक होते हैं । (देखो अल्पबहुत्वानुगम सूत्र ७५-७६ ) । एवं उपशामकों के संचयकालकी अपेक्षा क्षपकोंका काल अधिक होता है । हस्तलिखित प्रतियों में चूलिका- सूत्रोंकी व्यवस्था प्रस्तुत संस्करण में भिन्न भिन्न नौ चूलिकाओंके सूत्रोंकी संख्याका क्रम एक दूसरी चूलिकासे सर्वथा स्वतंत्र रखा गया है। यह व्यवस्था हस्तलिखित प्रतियोंमें पाई जानेवाली व्यवस्थासे कुछ भिन्न है । उदाहरणार्थ अमरावतीकी प्रतिमें प्रकृतिसमुत्कीर्तना नामक प्रथम चूलिका में सूत्रसंख्या १ से ४२ तक पाई जाती है । दूसरी स्थानसमुत्कीर्तन चूलिकामें सूत्रसंख्या १ से ११६ तक दी गई है । इसके आगेकी चूलिकाओंमें सूत्रोंपर चालू संख्याक्रम दिया गया है जिसके अनुसार प्रथम दंडकपर ११७, द्वितीय दंडकपर ११८, तृतीय दंडकपर ११९, उत्कृष्ट स्थिति चूलिकामें १२० से १६२ तक, जघन्यस्थितिमें १६३ से २०३ तक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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