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________________ धवला १० भगवती आ• गाथा ७ जम्हा सुदं विदक्कं १८८१ ८ अत्थाण वंजणाण य १८८२ ९ जेणेगमेव दव्वं १८८३ १० जम्हा सुदं विदक्कं १८८४ ११ अत्थाण वंजणाण य १८८५ १२ अविदक्कमवीचारं सुहुम १८८६ १३. सुहमम्मि कायजोगे १८८७ १४ अविदक्कमवीचारं अणियट्टी १८८८ १७. नन्विसूत्र-पीछे 'षट्खण्डागम व नन्दिसूत्र' शीर्षक में यह स्पष्ट किया जा चुका है कि धवला में 'अनेकक्षेत्र' अवधिज्ञान के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उस प्रसंग में 'वृत्तं च' के निर्देशपूर्वक "णेरइय-देवतित्थयरोहि" इत्यादि गाथा को उद्धृत किया गया है । यह गाथा नन्दिसूत्र में उपलब्ध होती है। १८. पंचास्तिकाय-ग्रन्थनामनिर्देश के बिना भी जो धवला में इसकी गाथाओं को उद्धत किया गया है उसका भी स्पष्टीकरण पीछे 'ग्रन्थोल्लेख' में पंचत्थिपाहुड के प्रसंग में किया जा चुका है। १९. प्रज्ञापना-जैसा कि पूर्व में स्पष्ट किया जा चुका है, जीवस्थान-सत्प्ररूपणा अनुयोगद्वार के अन्तर्गत कायमार्गणा के प्रसंग में धवलाकार द्वारा अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायकायिक जीवों के कुछ भेदों का निर्देश किया गया है। वे भेद जिस प्रकार मूलाचार, उत्तराध्ययन, जीवसमास और आचारांगनियुक्ति में उपलब्ध होते हैं उसी प्रकार वे प्रज्ञापना में भी उपलब्ध होते हैं।' २०. प्रमाणवातिक—यह ग्रन्थ प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक विद्वान् धर्मकीति (प्रायः ७वीं शती) के द्वारा रचा गया है। वेदनाकालविधान अनुयोगद्वार में स्थित बन्धाध्यवसान प्ररूपणा में प्रसंगप्राप्त अयोगव्यवच्छेद के स्वरूप को प्रकट करते हुए धवला में प्रमाणवार्तिक के इस श्लोक को उद्धत किया गया है-- अयोगमपर्योगमत्यन्तायोगमेव च । व्यवच्छिनत्ति धर्मस्य निपातो व्यतिरेचकः ॥४-१६०।। २१. प्रवचनसार-इसके रचयिता सुप्रसिद्ध आचार्य कुन्दकुन्द (लगभग प्रथम शताब्दी) हैं। जीवस्थान खण्ड के प्रारम्भ में आचार्य पुष्पदन्त के द्वारा जो मंगल किया गया है उस पंचनमस्कारात्मक मंगल की प्ररूपणा में प्रसंगप्राप्त नैःश्रेयस सुख के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए धवला में प्रकृत प्रवचनसार की "आदिसयमादसमुत्थं" आदि गाथा (१-१३) को उद्धत किया गया है। गाथा के चौथे चरण में प्रवचनसार में जहाँ 'सुद्धवओगप्पसिद्धाणं' ऐसा पाठ है, १. देखिए प्रज्ञापना (पण्णवणा) गाथा १-२०, १-२३ और १-२६ आदि। २. धवला, पु० ११, पृ० ३१७ ६३४ | षट्खण्डागम-परिशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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