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________________ पंचम अध्याय स्तुत्वा दानपति दानं स्मरयित्वा च गृहृतः । गृहीत्वा स्तुवतश्च स्तः प्राक्पश्चात्संस्तवौ क्रमात् ॥२४॥ स्तुत्वा त्वं दानपतिस्तव कीर्तिर्जगद्व्यापिनीत्यादिकीर्तनं कृत्वा । स्मरयित्वा - त्वं पूर्वं महादान- ३ पतिरिदानीं किमिति कृत्वा विस्मृत इति संबोध्य । दोषत्वं चात्र नग्नाचार्यकर्तव्य कार्पण्यादिदोषदर्शनात् ||२४|| अथ चिकित्सा - विद्या - मन्त्रांस्त्रीन् दोषानाह - चिकित्सा रुवप्रतीकाराद्विद्यामाहात्म्यदानतः । विद्या मन्त्रश्च तद्दानमाहात्म्याभ्यां मलोऽश्नतः ॥६५॥ रुक्प्रतीकारात् —— कायाद्यष्टाङ्गचिकित्सात् शास्त्रबलेन ज्वरादिव्याधिग्रहादीन्निराकृत्य तन्निराकरणमुपदिश्य च । उक्तं च 'रसायन विषक्षाराः कौमाराङ्गचिकित्सिते । चिकित्सादोष एषोऽस्ति भूतं शिल्पं शिराष्टधा ॥' [ ] शिलेरेति शालाक्यम् । दोषत्वं चात्र सावद्यादिदोषदर्शनात् । विद्येत्यादि - आकाशगामिन्यादिविद्यायाः १२ प्रभावेण प्रदानेन वा । तदुक्तम् - 'विद्या साधित सिद्धा स्यादुत्पादस्तत्प्रदानतः । तस्या माहात्म्यतो वापि विद्यादोषो भवेदसौ ॥' [ ] दाताकी स्तुति करके और पहले दिये हुए दानका स्मरण कराकर दान ग्रहण करनेवाला साधु पूर्वस्तुति नामक दोषका भागी होता है । तथा दान ग्रहण करके दाताकी स्तुति करनेवाला साधु पश्चात् स्तुति दोषका भागी होता है ||२४|| ३९३ आगे चिकित्सा, विद्या और मन्त्र इन तीन दोषोंको कहते हैं चिकित्सा शात्रके बलसे ज्वर आदि व्याधियोंको दूर करके उससे आहार प्राप्त करनेवाला साधु चिकित्सा नामक दोषका भागी है। आकाशगामिनी आदि विद्याके प्रभाव से या उसके दानसे आहार प्राप्त करनेवाला साधु विद्या नामक दोषका भागी है । या मैं तुम्हें अमुक विद्या दूँगा ऐसी आशा देकर भोजन आदि प्राप्त करनेपर भी वही दोष होता है । सर्प आदिका विष दूर करनेवाले मन्त्रके दानसे या उसके माहात्म्यसे या मन्त्र देनेकी आशा देकर भोजनादि प्राप्त करनेसे मन्त्र नामक दोष होता है ॥२५॥ विशेषार्थ - मूलाचार (६।३३) में चिकित्सा के आठ प्रकार होनेसे चिकित्सा दोष भी आठ बतलाये हैं - कौमारचिकित्सा अर्थात् बालकोंकी चिकित्सा, शरीर चिकित्सा अर्थात् ज्वरादि दूर करना, रसायन - जिससे उम्र बढ़ती है, शरीरकी झुर्रियाँ आदि दूर होती हैं, विष चिकित्सा अर्थात् विष उतारना, भूत चिकित्सा-भूत उतारने का इलाज, क्षारतन्त्र अर्थात् दुष्ट घाव वगैरहकी चिकित्सा, शलाका चिकित्सा अर्थात् सलाई द्वारा आँख आदि खोलना, शल्य चिकित्सा अर्थात् फोड़ा चीरना। इन आठ प्रकारों में से किसी भी प्रकार से १. - त्साशास्त्र -भ. कु. च. । २. शल्यं भ. कु. च. ३. शिरेति भ. कु. च. ४. प्रधान-भ. कु. च. 1 ५० Jain Education International For Private & Personal Use Only ६ १५ www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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