Book Title: Yugveer Acharya Vijayvallabhsuriji
Author(s): Fulchand Harichand Doshi
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ ॥ श्री पार्श्वनाथाय नमः ॥ AVAVANA. मरी भावना संवत १९७९ का वर्ष था । हुशीयारपुर (पंजाब) के उपाश्रय में भगवान श्री वासुपूज्य स्वामि के सामने सायंकाल को बैठकर 'सिक्खों के दस गुरू' इस पुस्तक को मैं पढ़ रहा था। परम गुरूभक्त दस गुरूओं में से चौथे श्री गरू अमरदासजी का चरित्र वांचा। उनकी श्री गुरू अंगतदेवजी के प्रति अटल श्रद्धाभक्ति का वर्णन बांचते हुए मेरा हृदय पसीज गया। श्री गुरु अंगतदेवजी अपने प्यारे शिष्य श्री गुरु अमरदासजी को कहते हैं: "हे मेरे प्यारे शिष्य, तुम कुछ मांगो।" तब परम गुरूभक्त श्री गुरु अमरदासजी हाथ जोड करके प्रार्थना करते हैं कि "भक्ति दान मोहे दिजिये हे गुरू दीनदयाल ।" इतने शब्द अपने श्रीमुख से कहते हुए उनका हृदय आनंद से भर जाता है और हर्ष के आंसुओं को वर्षाते हुए पुनः पुनः श्री गुरुदेव के चरणों में सिर झुका रहे हैं। WAVORGoveveoVOUP

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 570