Book Title: Yugpradhan Jinchandrasuri
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Paydhuni Mahavirswami Jain Derasar

View full book text
Previous | Next

Page 423
________________ ૩૧૪ परिशिष्ट (७) गुरु अवदात कहुँ केतला, जेता दिन हुआ तेतला । आसू वदि बीज सित्तरइ, बीलाडइ अणसण गुरु करइ ॥ १०॥ सुभ ध्यान सुरलोकमझार, पहुता देव करइ जयकार | कहइ गणि सुमति कल्लोल वचन्न, गुरु गुण गावइ ते धन धन्न ॥ ११ ॥ इति गुरु गीतम् । बाई नाना वाचनार्थ ..री, ए कीरति बहुली लाधी ॥ ७ ॥ जासु वास प्रभावथीय, संघपति हुया अनेक । बहु जिणहर जिण बिंबनीय, कीध प्रतीठ विवेक ॥ ८ ॥ जे सई हथि गुरु दीखीयाए, सीस तणा परिवार । ते गीतारथ गुण भर्या ए, हुया पदवी धार ॥ ९॥ सात ईति तिहाँ नवि हुई ए, जिहाँ गुरु रह्या चउमास । प्रतिबूझवि पतिसाहि करी, जिन शासन परकास ॥ १० ॥ गोतम जिम लब्धइ भर्या ए, रूपइ वयर कुमार । ए गुरुना गुण गावतां ए, किमइ न आवइ पार ॥ ११ ॥ संवत सोलह सित्तरइ ए, नयर बीलाडा ठामि । स्वर्गवास युगवर हुआ ए, करि अणसण सुहझाणि ॥ १२ ॥ श्रावक धन्न कटारिआ ए, वित्त वावइ गुरु थानि । उच्छव कीधा अति घणा ए, दिन दिन बधईं तइ वान ॥ १३ ॥ एह कवित्त भइ गुणइ ए, मन धरि भाव विसुद्धि । 'सुमतिकल्लोल' गणि इम कहइ ए, ते पामइ बहु रिद्धि ॥ १४ ॥ *X-X®

Loading...

Page Navigation
1 ... 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440