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हो, किन्तु भगवान महावीर के शब्दो मे वह मोक्ष का अधिकारी नहीं हो सकता । वस्तु का न्यायोचित बटवारा होने पर न किसी की शिकायत होती है और न किसी को दुग्व होता है। अत न्यायसगत वितरण करना मानवता है। मानवेतर प्राणियो मे यह विशेषता नही पाई जाती।
२०, आत्म-बुद्धि सभी मानवो मे आत्मीयता का अनुभव करना, "वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना रखना। ऐसे शुभ सकल्प मानव मे ही उत्पन्न हो सकते हैं। सब प्राणियो को आत्मतुल्य समझना, या सव मनुप्यो को अपने सम्बन्धी के समान समझना, अपनत्व भाव रखना, किसी में भी परत्व की भावना न रखना, भले ही वह छोटा है या बडा, धर्मात्मा है या पापात्मा, आस्तिक है या नास्तिक, किसी के प्रति भी दुपंभाव न रखना, घृणा, अर्थात् नफरत न रखना मानवता है। मानव का मानव के प्रति सद्व्यवहार करना ही मानवधर्म है।
२१. देवता-बुद्धि मानव-मात्र मे देवतुल्य पूज्य-भावना रखना । किसी के साथ राक्षसी या दानवी भावना से बर्ताव न करना, दिव्यदृष्टि से देखना, समझना, मानना प्रत्येक मानव का हिनचिन्तन करना मानवता है। आदर की दृष्टि से सव का सम्मान करना ही देवता-बुद्धि है।
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[ योग . एक चिन्तन