Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas

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Page 347
________________ ( ३२६ ) योगचिन्तामणिः । [ मिश्राधिकार: नेत्ररोग में त्रिफला, वातरक्त में गिलोय, संग्रहणी में छाछ, कुष्ठरोग में खैरसार और सम्पूर्ण रोगों में शिलाजीत सेवन करे ॥ १ ॥ अथ दंभः । धनुवते मृगीवाते चोन्मादे चित्तविभ्रमे । निश्चैतन्ये सन्निपाते दम्भं तत्र प्रदापयेत् ॥ १ ॥ gat शंखे च पादेषु कृकाटीमूलरंध्रयोः । नेत्ररोगे ह्यपस्मारे भ्रुवौ शंखौ च दम्भयेत् ॥ २ ॥ कामले पाण्डुरोगे च कृकाट्यौ च प्रकोष्ठके । औदरेषु च सर्वेषु दम्भयेदुदरोपरि ॥ ३ ॥ हृदये यस्य पीडा स्याद्दम्भयेद्धृदयोपरि ॥ ४ ॥ धनुर्वात, मृगी, उन्मादरोग, चित्तविकार, बेहोशी और सन्निपात इन रोगों में दम्भ अर्थात दाग देवे. दोनों भौंहें, कनपटी, पैर, कृकाटी, मस्तक, गुदा इनमें दाग देय, नेत्ररोग और मृगीरोग इनमें भौंह और कनपटीको दागे. कामला और पीलियामें कृकाटी ( घांटी ) और पेटको टागे तथा उदरके सब रोगों में पेटको दांगे हृदयमें पीडा होवे तो हृदयके ऊपर दाग देवे ॥ १-४ ॥ विषचिकित्सा | शिरीषपुष्पं सकरंजबीजं काश्मीरजं कुष्ठमनःशिले च । एषो गदो राजिलवृश्विकानां संक्रांतिकारी कथितो जलेन ॥ १ ॥ शिरीषं मरिचं निम्बं कर्कोटी तण्डुलीयकम् । श्यामा पाठा च शुंठी च एकैकं विषदोषहृत ॥ २ ॥ Aho ! Shrutgyanam

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