Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 01
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
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________________ ( 208) दक्षिण-पश्चिम कोन में परकोटे सहित मजबूत देवल है, जिसमें श्रीशंखेश्वर-पार्श्वनाथ के चरण विराजमान हैं जो प्राचीन हैं। यहाँ कार्तिक सुद 1 का हरसाल मेला भराता है, जिसमें भीनमाल के अंचलगच्छीय और कुछ तपागच्छीय जैन दर्शनों के लिये आते हैं। * पंडित हीरालाल हंसराज संग्रहित 'श्रीजैनगोत्र-संग्रह' की प्रस्तावना में लिखा है कि-विक्रम सं० 202 भीनमाल नगर में सोलंकी अजितसिंह का राज्य था / उसके समय में मीरगामोचा नामक म्लेच्छराजा भीनमाल पर चढ़ाई करके आया। उसके साथ यहाँ खूब युद्ध हुआ और इस युद्ध में आखिर राजा अजितासंह सोलंकी मारा गया / बाद में कितने एक वर्ष तक इस नगर से बहुत लक्ष्मी लूट कर और कसबे को निर्जनप्राय करके मीरगामोचा चला गया। फिर सं० 503 में शहर को आबाद करके सिंह नामक राजाने राज्य किया। तदनन्तर इसकी गादी पर नीचे मुताबिक राजा हुए१ जइयाणकुंवर 527 / 7 जयन्त 719 2 श्रीकरण 581 8 जयमल 735 3 मूलजी 605 9 जोगसिंह 741 4 गोपालजी 645 / 10 जयवंत __746 5 रामदास 675 11 भाणजी 764 6. सामन्त . 705 | राजा भाणसिंह के शासनकाल में जैनशाहूकारों के सिवाय श्रीमालब्राह्मणों में 62 और प्राग्वाटब्राह्मणों में 8 करोड