Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra लक्षरणा - निरूपरण www.kobatirth.org ८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रदर्शन; शाब्द बोध विषयक कार्य-कारण-भाव के प्रदर्शन - वाक्य में प्रथम 'तद्धर्मावच्छिन्न' पद का प्रयोजन; शाब्द ज्ञान में, वृत्ति-कृत विशेषता के विषय में दो प्रकार के सम्बन्धों का, द्वितीय ' तद्धर्मावच्छिन्न' पद के प्रयोजन का तथा शाब्द बांध - विषयक कार्यकारणभाव-रूप नियम के विविध प्रयोजनों का कथन; 'शक्ति' के स्वरूप के विषय में नैयायिकों का मत; नैयायिकों के मत का खण्डन वैयाकरणों के मत में 'शक्ति' का स्वरूप; 'शक्ति' के साथ सम्बन्ध की अनिवार्य सत्ता के विषय में भर्तृहरि का कथन; 'सम्बन्ध' पद तथा वाक्य दोनों में रहता है; 'संकेत' के विषय में योग सूत्र के व्यास भाष्य का प्रमाण; 'ईश्वर संकेत ही शक्ति है' नैयायिकों के इस मत का खण्डन ; 'शब्द तथा अर्थ में तादात्म्य सम्बन्ध है' इस सिद्धान्त में प्रमाण; ' तादात्म्य' सम्बन्ध का स्वरूप; 'बुद्धि-गत अर्थ ही वाच्य है' इस सिद्धान्त का प्रतिपादन; 'बुद्धि-गत अर्थ ही शब्द के द्वारा अभिव्यक्त होता है' इस विषय में एक और हेतु; 'शशशृङ्गम्' जैसे प्रयोगों में नैयायिकों के मन्तव्य का खण्डन; अर्थ भेद के आधार पर शब्द भेद या 'अनेकशब्दता' तथा आकार - साम्य के आधार पर 'एकशब्दता' का व्यवहार; 'साधु' तथा 'असाधु' दोनों प्रकार शब्दों में 'शक्ति' की सत्ता का प्रतिपादन ; 'असाधु शब्दों में वाचकता शक्ति नहीं होती' नैयायिकों के इस मत का निराकरण; अपभ्रंश शब्दों में वाचकता शक्ति के मानने पर ही मीमांसकों का 'आर्य म्लेच्छाधिकरण' सुसंगत हो पाता हैं; साधु तथा प्रसाधु शब्दों की परिभाषा; 'शक्ति' के तीन प्रकार; 'पङ्कज' शब्द में लक्षणा नहीं मानी जा सकती तथा इसके प्रयोगों में कही केवल 'रूढि' और कहीं केवल 'योग' अर्थ का बोध होता है; 'यौगिक रूढ़ि' की परिभाषा; 'संयोग' आदि के द्वारा 'अभिधा' शक्ति का नियमन होता है; संयोग आदि के उदाहरण । ६३ - ७७ 'लक्षणा' वृत्ति के विषय में नैयायिकों का मत; लक्षरणा के दो और भेद; 'जहत्स्वार्था' लक्षरणा की परिभाषा; लक्षणा में 'तात्स्थ्य' आदि अनेक धर्म निमित्त बनते हैं; 'तात्पर्य' की अनुपपत्तिलक्षणा का मूल है; लक्षरणा का एक तीसरा प्रकार - 'जहद् प्रजहल्लक्षणा'; मीमांसकों के द्वारा लक्षणा की एक दूसरी परिभाषा; प्राचीन नैयायिकों को दृष्टि से एक चौथी प्रकार की लक्षणा - 'लक्षितलक्षणा'; लक्षरणा के दो अन्य भेद--- 'प्रयोजनवती' तथा 'निरूढ़ा'; लक्षणा वृत्ति का खण्डन; लक्षणा वृत्ति के प्रभाव में उपस्थित होने वाले दोषों का समाधान । For Private and Personal Use Only

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