Book Title: Vrundavanvilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Hiteshi Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 161
________________ पत्रव्यवहार। । प्रश्न-तीर्थकरकी वाणी गणधर झेलै, सो ही काल ति नकै सामायिक करनेका । दोय कार्य एकै काल कैसे करे ? * उत्तर-गणधर मुनिनकै सामायिक तौ सदाकाल ही है। जात तृण कंचन शत्रु मित्र जीवन मरण सुखदुःखादिकमै । रागद्वेष न करना सो ही सामायिक है । सो यह तौ सदाका-1 ल ही है । अर तीनकाल सामायिक करना स्थापन किया है,* सो तीर्थकर तथा आचार्यादिक स्थापना, गुरु परोक्ष होय तिनकी स्तुति वंदनादिक करनी, तिनका भक्तिका पाठ पढ़ना,* तथा संजममै दोष लाग्या होय, ताका प्रतिक्रमण करना । इत्यादि क्रिया कलापके अथे तीन काल नेम स्थापन किया है। * अर तीर्थंकर साक्षात विद्यमान है, तिनकी भक्ति स्तुति -1 दना तौ साक्षात होय ही रहै । अर तीनकी वाणी सुनना | झेलना यह ही महान सामायिक है, यामै प्रश्न नाहीं। । प्रश्न-रामचन्द्रकृत चौवीसतीर्थकरनिके पूजनके पाठमैं , त्रिमंगी छन्दमैं मृगमदगोरोचनका नाम चन्दनके पाठमै लिख्या में है, सो यह कैसे ? * उत्तर-पूजनका पाठ चौवीस पूजाका इहां है । तामै देख्या सामान्यमै तथा विशेषमै मृगमद गोरोचनका नाम तो। लिख्या नाहीं । अर अन्य कोई पाठ होइ, तामैं लिख्या में * होगा, तो लौकिकमै कस्तूरी गोरोचन सुगन्धद्रव्यमै प्रसिद्ध । है। तिनकी सुगंधकी उपमा देनेको लिख्या होइगा । ए द्र-1 व्य निपट अशुद्ध है । सो पूजनमै तौ इनका अधिकार नाहीं।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181