Book Title: Vivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Author(s): Chandrashekhar Sharma
Publisher: Chandrashekhar Sharma

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Page 146
________________ ( १४० ) विवेकचूडामणिः । होगा इसलिये अद्वयानन्द रसके अनुभवसे तृप्त होकर आत्मनिष्ठा से सदावर्त्ता करो ॥ ५२४ ॥ स्वमेव सर्वथा पश्यन् मन्यमानः स्वमव्ययम् । स्वानन्दमनुभुञ्जानः कालं नय महामते ।। ५२५ ॥ गुरुमहाराज शिष्यको शिक्षा करते हैं कि आत्मस्वरूपको सर्वथा दीखता हुआ आत्माको नाशरहित मानो और आत्मानन्द रसके भोग करता हुआ कालको व्यतीत करो ।। ५२५ ॥ अखण्ड बोधात्मनि निर्विकल्पे विकल्पनं व्योम्नि पुरप्रकल्पनम् । तदद्वयानन्दमयात्मना सदा शान्ति परामेत्य भजस्व मौनम् ॥ ५२६ ॥ विकल्पसे रहित अखण्ड बोधात्मक परब्रह्ममें जो नाना प्रकारकी कल्पना है सो सब आकाशमें मिथ्यापुरकी प्रकल्पना सदृश मिथ्या है इस कारण अद्वितीय आनन्दमय आत्मस्वरूपसे मौन होकर परम शान्तिको सेवन करो ॥ ५२६ ॥ तूष्णीमवस्था परमोपशान्तिर्बुद्धेरसत्कल्पविकल्पहेतोः । ब्रह्मात्मना ब्रह्मविदो महात्मनो यत्राद्वयानन्दसुखं निरन्तरम् ॥ ५२७ ॥ असत्कल्पविकल्पका कारण जो बुद्धि है उसको शान्तिके लिये मौन अवस्थाका प्राप्त होना ब्रह्मज्ञानी महात्मा के लिये उत्तम है जिस अवस्थामें ब्रह्मस्वरूप होकर अद्वितीयानन्द सुखको निरन्तर अनुभव होता है ॥ ५२७ ॥ नास्ति निर्वासनान्मौनात्परं सुखकृदुत्तमम् । विज्ञातात्मस्वरूपस्य स्वानन्दरसपायिनः॥५२८॥ जिसने आत्मस्वरूपको जान लिया और आत्मानन्द रसको पान

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