Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 44
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates आनंदस्वभावी परम ब्रह्म त्रैकालिक प्रात्मा में चरना, रमना अर्थात् लीन होनेरूप शुद्धि निश्चय से उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है और उसके साथ होने वाला स्त्री संगमादि का त्यागरूप शुभ भाव व्यवहार से उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है। विनोद - निश्चय और व्यवहार धर्म में क्या अंतर है ? जिनेश - जो उत्तम क्षमादि शुद्ध भावरूप निश्चय धर्म है, वह संवर निर्जरा रूप होने से मुक्ति का कारण है और जो क्षमादिरूप शुभभाव व्यवहार धर्म है, वह पुण्य बंध का कारण है। विनोद - उक्त निश्चय व्यवहार रूप उत्तम क्षमादि दश धर्म तो मुनिवरों के लिये हैं, पर हमारे लिये....... ? जिनेश - भाई, धर्म तो सबके लिये एक ही है। यह बात अलग है कि मुनिराज अपने उग्र पुरुषार्थ द्वारा अनन्तानुबंधी आदि तीन कषाय के प्रभावरूप विशेष शुद्धि प्राप्त कर लेते हैं और गृहस्थ अपनी भूमिकानुसार दो या एक कषाय के अभावरूप अल्प शुद्धि प्राप्त कर पाते हैं। प्रश्न - १. दशलक्षण धर्म क्या है ? वे कितने प्रकार के होते हैं ? नाम सहित गिनाइये । २. निश्चय और व्यवहार धर्म में क्या अंतर है ? स्पष्ट कीजिये । ३. निम्नलिखित में से किन्हीं तीन धर्मों को निश्चय और व्यवहार की संधिपूर्वक स्पष्ट कीजिये : उत्तम क्षमा, उत्तम सत्य, उत्तम तप, उत्तम प्रकिचन और उत्तम ब्रह्मचर्य । ४१ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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