Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

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Page 681
________________ ६६७ उपरोधिन् उपरोधिन् वि० रुकावट-अटकायत करनार उपलक्ष्य वि० मेळववा योग्य; प्राप्त करी शकाय तेवू (२) प्रशंसनीय ; भलामण करवा योग्य उपली ४ आ० नजीक पडवू; वळगq उपवद् १ आ० मनावq; समजाव; खुशामत करवी करवं उपवर्ण १० प० विगतवार वर्णन उपवस् १५० निवास करवो (२) उपवास करवो [रागनुं मंडाण उपवहन न० गावानुं शरू करता पहेलां उपवंचित वि० छेतरायेलं; निराश करायेलं उपवीज १५० पंखो नाखवो उपवीणयति प० (देव समक्ष वीणा वगाडवी) उपवीणित न० वीणा साथे गावं ते उपशम् ४ प० शांत पडवू; शांत थर्बु (२) बंध पडq (अग्नि, अवाज, कोप) उपशल्य पुं० भालो; खीलो (बारणानों) उपशाय पुं० वाराफरती सूq ते (पहेरो भरतां) उपशायिन् वि० नजीक सूतेलु (२) ऊंघतुं; सूतुं (३) शांत पाडतुं (४) वाराफरती जागीने पहेरो भरतुं उपशर वि० शूर करतां हीन कोटी, उपशोभा स्त्री० शोभाशणगार उपशोष पुं० सूकवी नाखवू ते ; करमावी नाखवं ते उपसर पुं० सळंग पंक्ति (२) गर्भाधान माटे पासे जq (सांढ-) उपसर्या स्त्री० गर्भाधान माटे तैयार थयेली गाय उपसंग्रह. ९५० अनुभवq; वेठवू (२) स्वीकारवू (३) पकडवू (४) कबजे लेवू (५) जीती लेवू; मनावी लेवू (६) भेटवू [होय तेम उपसंध्यम् अ० लगभग संध्याकाळ उपाग्निका उपसंभाष पुं० वार्तालाप; वातचीत (२) सांत्वन [शोभीतुं; पूर्ण उपसंस्कृत वि० रांधेलं; तैयार करेलु (२) उपसंहित वि० युक्त; सहित (२)संबंधी उपसांत्व १० प० शांत पाडवू उपस्कार पुं० पूर्ति; पुरवणी (२) अध्याहार (३) शणगारवं ते (४) शणगार (५) स्वाद इ० माटेनी मसालानी वस्तु [छोडतुं उपस्नुत वि० दूझतुं; दूधनी धारा उपस्नेह पुं० भीनुं थवं ते उपस्नेहयति प० (स्नेह करतुं थाय तेम करवू) उपस्पृश् ६५० स्पर्श करवो (पाणीने); नाह (२)कोगळा करवा (३) छांटवू उपस्मृति स्त्री० स्मृतिशास्त्रनो गौण ग्रंथ (१८ मनाय छ) [उष्णता उपस्वेद पुं० परसेवो (२) गरमी; उपहतदृश् वि० झंखवाई गयेलं; आंधळं थई गयेलं उपहन २ प० मारवं; ठोकवू (२) व्यय करवो; नाश करवो (३) -मां खोस (४) पाठ करी जवामां भूल करवी उपहव पुं० आमंत्रण; बोलाव ते उपहस्तिका स्त्री० पानसोपारीनो वाटवो उपहारिन् वि० आपतुं; वक्षतुं ; लावतुं (२) होमतुं; वधेरतुं; बलिदान आपतुं [वानो बलि उपहार्य न० देव-पित आदिने आपउपहास्यता स्त्री० उपहास के हांसीने पात्र थवा के होवापर्यु उपह्वर पुं० एकांत स्थान (२) सांनिध्य उपह्वे १ आ० आह्वान करवू (२) बोलाव, उपाकृत वि० मंत्रथी पवित्र करेलु (२) अशुभ (३) उपयोगमा लीधेलु (४) पीड़ित; व्याकुळ [पत्नी उपाग्निका स्त्री० विधिसर परणेली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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