Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad

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Page 12
________________ च्चि रूप साथेनां क्रियापदोना गण माटे पण तेम ज समजवं. जेम के क्रोडीकृ आलिंगनमां लेवू; भेटवू. धातुनां प्रेरक अने कर्मणि रूपोना अर्थ ज्यां आपवा जेवा लाग्या त्यां जुदो फकरो पाडीने -प्रेरक० के -कर्मणि० एम लखीने स्वतंत्र संख्याक्रम दर्शावीने आप्या छे. जेम के, जुओ स्था धातु. ___अर्थो आपवामां मूळ व्युत्पत्तिने लक्ष्यमा राखीने अर्थ आप्यो छे. मधुसूदन एटले मात्र श्रीकृष्ण अर्थ न आपतां, " (मधु राक्षसने हणनार) श्रीकृष्ण" एम लख्य छे; जेथी ए नाम शाथी पड्युं छे ते पण लक्ष्यमां आवे. ते ज प्रमाणे जुओ गुडाकेश. चार, सात, आठ वगेरे संख्याओवाळा शब्दोमां बने त्यां लंबाण करीने पण ते चार, सात, के आठ वस्तुओ कई ते गणी वतावी छे. जेम के, जुओ चतुर्दशरत्नानि' के सप्तसमुद्राः, जेथी एटलं जाणवा बीजा ग्रंथो सुधी दोडवू न पडे. केटलाक शब्दोना अर्थो एकबीजाना संबंधमां वधु जाणीता होय छे. त्यां पण साथे कौंसमां ते बीजो शब्द दर्शाव्यो छे. जेम के पूर्व एटले वाव कूवा इ० बंधाववाथी थतुं पुण्य. ते शब्द, यज्ञयागादिथी थता पुण्यवाचक 'इष्ट' शब्द साथे ज (' इष्टापूर्त') वधु वपराय छे. एटले पूर्त शब्दना अर्थमा 'इष्ट ' ने पण कौंसमां नोंध्यो छे. तहेवार वगेरेना दिवसोनी तिथि के महिनो ज्यां निश्चित रूपे जणावी शकाय, त्यां ते जणाववा प्रयत्न कर्यो छे. पण एक बावतमा लाचारी कबूल करवी आवश्यक छे. संस्कृत साहित्यमां वनस्पति के पशु-पंखी सृष्टि साथे एटलो बधो गाढ परिचय प्रगट थाय छे, के जाणे ए बधी वनस्पतिओ, पशु, पंखी, फूल-फळ, पण मनुष्योना जीवनसाथी-- सहबंधुओज होय. तेथी ए साहित्यमां वृक्षो, पशुओ, पंखीओ, फूल-फळ वगेरेना उल्लेखो घंणा आवे छे. अंग्रेज कोषकारोए ए बधाने लॅटिन परिभाषानां नामोमां मूकवा प्रयत्न कर्यो छे. पण आपणा देशी कोशकारोए मोटे भागे अर्थमा ‘एक वृक्ष', ‘एक फूल', 'एक पंखी' एम कहीने चलाव्यु छे. ते बधाना देशी भाषाना अर्थो शोधीने आपवा जोईए. हवे वनस्पतिशास्त्र तथा पंखीवर्णन इत्यादिनां पुस्तको घणां बहार पड्यां छे. तेमाथी योग्य चोकसाई करी अर्थो निश्चित करीने मोगरो, जाई, जुई, बटेर, लावरी वगेरे जेवा परिचित अर्थों आपीए, तो ज ते बधा शब्दोना उपयोग पाछळनी उपमा के काव्य आपणे वधु माणी शकीए. आ कोशन काम जुदे जुदे हाथे थयुं छे. एम एकठी थयेली सामग्री परथी हस्तलिखित प्रत तैयार करीने छपाववा प्रेसमां मोकलवानुं थयुं त्यारे जणायु के शब्दोनी पसंदगीमां तथा अर्थ आपवानी रीतमा एकरूपता लाववानी जरूर छे; अने घणुं बीजं करवानुं रहे छे. समय साथे होड बकीने ए बधुं झटपट आटोपवानुं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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