Book Title: Vijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Author(s): Pushpadanta Jain, Others
Publisher: Akhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti

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Page 13
________________ शुभकामनाएं । “विजय वल्लभ सूरि उस महान् आत्मा का नाम है, जिसमें वीतरागता का स्पष्ट प्रतिभास था। उन्होंने समता वृत्ति के आधार पर जैन एकता के लिए बहुत प्रयत्न किया। आचार्य तुलसी के प्रति उनके मन में बहुत ही आदर का भाव था। इन दोनों महान आचार्यों ने जैन एकता के लिए जो कार्य शुरू किया था, वह अबाध गति से चलता तो जैन समाज बहुत शक्तिशाली हो जाता। दिल्ली में आचार्य तुलसी, आचार्य देशभूषण जी और आचार्य आनन्द ऋषि जी का जैन एकता के विषय में सहचिन्तन हुआ था। उस समय भी आचार्य वल्लभ सूरि जी की स्मृति सजीव हो गई। एक संयोग की बात है, विजय वल्लभ सूरि का स्वर्गवास मुम्बई में हुआ। उस समय आचार्य तुलसी भी मुम्बई में प्रवास कर रहे थे। जैसे ही उस बात का पता चला, आचार्य तुलसी उनके स्थान पर पधारे। वहां माध्यस्थ भावना और उनके प्रति आदर भावना प्रकट की। - आचार्य वल्लभ सूरि उन वीतरागोन्मुखी आत्माओं में थे, जो विरल होती हैं। उनके स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी की चिर स्मृति बने, जन-जन के मन में वीतरागोन्मुखी चेतना जागृत करे। इस दिशा में होने वाला प्रयत्न बहुत कल्याणकारी होगा।" - आचार्य महाप्रज्ञ Jalin Edication intemattonell Factoriesincareone wandanastiyang

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