Book Title: Vijay Prashasti Sar Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai Publisher: Jain Shasan View full book textPage 8
________________ अहम् श्रीमद्विजयधर्मसूरिभ्यो नम : 'विजयप्रशस्तिसार'. * पहला प्रकरण * ( विजयसेन सूरिका जन्म और 'कमा ' शेठकी दीक्षा). जिस समय मेदपाट (मेवाड ) देश, कर्णाट-लाट-विराट-घनघाट-सौराष्ट्र-महाराष्ट्र-गौड़ चौड़-चीन-वत्स मत्स्य-कच्छ-काशी. कोशल-कुरु अंग-बंग-धंग और मरु आदि देशो में सबसे बढ़ कर प्रधान गिना जाता था, जिस समय उसकी भूमि रस पूर्ण थी, जिस समय उस देश के समस्त लोग ऋद्धि समृद्धि से कुबेरकी स्पर्धा कर रहे थे और जिस समय वहां के निवासी ( रंक से लेकर राय पर्यन्त) नीति-धर्म का सम्यक्प्रकार से पालन कर रहे थे, उस समय, एकरोज माकाश में भ्रमण करते हुए और नानाप्रकार की भूमि को देखने की इच्छा से 'नारद मुनि इस मेदपाट( मेवाड़ )देश में पाए । इस देश की उन्नति और स्वाभाविक सरलता से आप अधिक प्रसन्न हुए और आपने इस विशाल प्रदेश में कुछ काल तक निवास भी किया। क्योंकि वहाँ आपके नाम से एक नगर बस गया जिसका नाम 'नारद पुरी' पड़ा। इस अलौकिक नारद पुरी का यथार्थ वर्णन होना कठिन है । क्या यह लेखनी इस कार्य को अच्छी तरह कर सकती है ? कभी नहीं ।Page Navigation
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