Book Title: Vasupujya Charitam
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 14
________________ (२) 5868A व्यापारसार- 349A तवालोके विधर्मधीः ॥ गलद० ॥ 598bA पुण्यश्रीद्वरवि- 369bA कृपासारः॥ तृतः॥ 4138A तयैतया॥ 6128B पुण्यसाराभिधं 520bA वितीर्णे । राज्ये न्यस्य 528bA ०न्तरायान्तानीतस्य सुतं द्रुतम् । .ति नामतः 658aA ०दीपिकाम् ॥ 538bB मतम् । ,, b, ०देशनां क्लेश 542aB विज्ञेया स्थितिवाशिनीम् ॥ रस्यापि । 673bA मिषादिति।। 582bB भेदाः। II. प्रपञ्चयामास ॥ 598aB. तदाभजन् । नरकं च न॥ -604bA सुधाम्बोनिधि53bA. निजाभाग्य०॥ सेवनम् । 888A किंचित्ततो ॥ 629aB प्रापतत् । 104aB विस्मितः॥ 6396B मूशितकृत118bB वदेत् ॥ च्छिदः । 157bA कर्णयोस्तु ह- 1058aA ससुराननः । शोऽगमन् ॥ 10748A. दुर्बन्धकर्मवंशो160bA सानन्दम् ॥ त्यः। 258B मन्त्रीन्दुपु 1175bB उपदेशवरः। त्राद्यैः ॥ 1421bB क्षमासारै० 290bA जीविताकारः 14496B तावद्यावदिमाः 326bB तन्मृत्यौ मावि सप्ताभूवन्मासेषु रहोऽस्तु नः सप्तेषु ॥ 1bB 40aB

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