Book Title: Vastusara Prakarana
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 277
________________ रत्नपरीक्षा (२४५) इति चंदनम् । नइवालकासमीरामरुचमिया चरंति मुरमंसिं । मुच्छंगठिउनमेसिं कत्थरि य अरुणपीयकसिणाभा ॥११३॥ नइवालकासमीरे मियणाही होइ वीसविसुदा य । पंचि उरमाइपव्वयसंभुआ अट्ठदह नेया ॥११४॥ मियणाहिवीणउ हुइ पण तोला जाव चम्म सह तुल्ले । तस्स कणुवारविसुवा चम्मो वि सुवट्टउद्देसो ॥११५॥ मियणाहि उण्हमहुरा कडुया तिक्खा य तह य सुकसाया । दुग्गंध छद्दि तावं दोसतिगं हरइ सुसणेहा ॥११६॥ इति कस्तूरिका । कसभीरजवडकेसरिदेसेसु हवइ कुंकुम पवरं । वीस बार ट्ठ विसुवाएण आदण कुरु मुजभवं च ॥११७॥ इति कुंकुमम् ।। मुरमासकुट्टवालय नह चंदण अगरु मुत्थछल्लिरं । सिल्हारखंडजुयं सममिस्सं होइ वरधुवं ॥११८॥ इति दशाङ्गधूपः ।। सिरिचंदणसंभूया घणसार सुवासिया य सियवासा । मुरमास वालयभवा कत्थूरि य वसिया सामा ॥११९॥ इति वासाः । सिंधूनइ पच्छिमाए अठाणदेसे य ढिंगवड्ढपुरे । गिरिखाणीओ सिंधव सउंचल दुन्ने वि जायं ॥१२०॥ तत्थेव य भूमीए गिरिमज्झे खणिय कूवनीरुवरे । जायंति बहतरीओ तं जाणह कत्तराएलं ॥१२॥ पच्छिमपठाणदेसे सिंधुनईपारिगि दुगंतरए । भूमीओ होइ हिंगा मूलयकं दव्वकंदाओ ॥१२२॥ उत्तरिय अलादीरी दाक्खिणिया हिंगुरु विसेसाओ । जायइ कमेण हीणा वीसबिसोवाइ चउचउरो ॥१२३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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