Book Title: Varang Chariu
Author(s): Sumat Kumar Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 18
________________ वरंगचरिउ 5. वाचस्पत्य, संस्कृताभिधान' में अपभ्रंश-अप + भ्रंश् + घञ्, अपरक्षणे अधःपतने। अपभ्रंशति स्वभावात्प्रच्यवते। अप+भ्रंश-कर्तरि अच् । साधु शब्दस्य शक्ति वैकल्यप्रयुक्तान्यथोच्चारण युक्ते। अपशब्दे त एव शक्तिवैफल्य प्रमादालसतादिभिः अन्यथोच्चरिताः शब्दा अपशब्दा इतीरिताः । अपशब्द अपवैपरीत्यते। 6. 'संस्कृत हिन्दी कोश' (वामन शिवराम आप्टे)-(अप + भ्रंश् + घञ्) 1. नीचे गिरना, पतन-अत्यारूढिर्भवति महतामप्यपभ्रंशनिष्ठा-शकु. 4 अंक 2. भ्रष्ट शब्दः भ्रष्टाचार अतः अशुद्ध शब्द चाहे वह व्याकरण के नियमों के विपरीत हो और चाहे वह ऐसे अर्थ में प्रयुक्त हुआ हो जो संस्कृत न हो। 3. भ्रष्टभाषा (काव्य में) गड़रियों आदि द्वारा प्रयुक्त प्राकृत बोली का निम्नतम रूप (शास्त्र में) संस्कृत से भिन्न कोई भी भाषा-आभीरादिगिरः काव्यष्वपभ्रंश इति स्मृता, शास्त्रेक संस्कृतादन्यपभ्रंशतयोदितम्-काव्यादर्श। विश्वप्रकाश' (कोश)-अपभ्रंशोऽपशब्दे स्याद्भाषाभेदावपातयोः । मेदिनी' (कोश)-अपभ्रंशस्तु पतने भाषाभेदापशब्दयोः। अनेकार्थसंग्रहःअपभ्रंशो भाषाभेदापशब्दयोः । विश्वलोचन -अपभ्रंशो दुष्पतने भाषाभेदापशब्दयोः । शब्दरतन समन्वय कोश-अपभ्रंशोऽपशब्दे स्याभाषाभेदावपातयोः । हिन्दी विश्वकोश में अपभ्रंश (सं.पु.) अपभ्रंश-घञ् । 1. गिराव, गलाव, 2. भाषा विशेष, 3. बिगड़ा हुआ। हिन्दी शब्द सागर-अपभ्रंश-संज्ञा पु. (स) नीचे गिरना, पतन, बिगाड़, शब्द का विकृत रूप, प्राकृत भाषाओं का परवर्ती रूप, जिससे उत्तरभारत की आधुनिक आर्य भाषाओं की उत्पत्ति की जाती है। प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में अपभ्रंश और अपभ्रष्ट दोनों नाम मिलते हैं। प्राकृत और अपभ्रंश की रचनाओं में अपभ्रंश के लिए अवहंस, अवभंस, अवहत्थ, अवहट, अवहट्ट, अवहठ, अवहट्ट का प्रयोग किया गया है। मैथिल कोकिल महाकवि विद्यापति ने अपभ्रंश को अवहट्ट की संज्ञा दी-“देसिल वआना सब जन मिट्ठा। तें तेसन जंपओं अवहट्ठा।" पउमचरिउ में महाकवि स्वयम्भू अत्यन्त गर्मीले, स्वाभिमान दीप्त, स्वर में अपनी देशी भाषा 1. वाचस्पत्य, संस्कृताभिधान, जिल्द-1, 2. वामन शिवराम आप्टे, संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 57, 3. विश्वप्रकाश, 30.37, 4. मेदिनी 30.31, 5. अनेकार्थ संग्रह-4, पृ. 323, 6. विश्वलोचन, चतुर्थ, पृ. 38

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