Book Title: Vadsangraha Author(s): Yashovijay Upadhyay Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti View full book textPage 5
________________ है कि जिस मूलावर्श प्रति से उसका सम्पादन हुआ था उस मूलादर्श प्रति में उस समय पूर्णतया ३ पत्र गैरहाजिर थे। यह प्रति देवशापाडा (अहमदाबाद) के प्राचीन हस्तप्रतों के भंडार में आज भी सुरक्षित है और संघ के सौभाग्य से वे ३ पत्र जो पहले नहीं थे वे भी उसमें शामिल है। उसमें कुल ६ पत्र हैं जिसमें तीन का अङ्क दो बार है । प्रति के हस्ताक्षर से अनुमान किया जा सकता है कि यह प्रति उपाध्याय यशोविजय म. के गुरुजी श्रीनयविजयजी महाराज ने लिखी होगी। हाल इसके अलावा दूसरी कोई प्रति इस प्रकरण की उपलब्ध नहीं हो रही है । इसीलिये केवल. एक ही प्रप्ति के आधार पर इस प्रकरण का सम्पादन हुआ है। पृष्ठ ६ में प्रथम पंक्ति में 'क्षणसाड्रा से लगा कर पृष्ठ ११ में तुक्ति आसरकप्रकाशित में नहीं ' कौंस में अनुमान से पाठ जोड दिया था। पुनः पृष्ठ १६ पंक्ति ९ में । 'षय आरम्भः' से लगाकर सम्पूर्ण ग्रन्थ पूर्व प्रकाशन में नहीं छप सका था। श्रीसंघ के सौभाग्य से यहाँ सम्पूर्ण प्रकरण का प्रकाशन हो रहा है। कूपदृष्टान्त नामप्रन्थकार ने मूल और टीका इन दो विभाग में प्रन्थ का प्रणयन किया है। यद्यपि टीका के दूसरे श्लोक में श्री उपाध्यायजो इस प्रन्य का 'तत्त्वविवेक' अभिधान सूचित कर रहे हो ऐसा लगता है फिर भी मूल के प्रथम श्लोक में कुपदृष्टान्त विशदीकरण को प्रतिज्ञा होने से और पूर्व प्रकाशन में भी इसका यह अभिधान ख्यात होने से इस ग्रन्थ का नाम 'कूपदृष्टान्तविशदीकरण' ही रखा गया है।Page Navigation
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