Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्ययनसृत्रम् ॥५८५ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृशशरीरा भवंति. इमां गौतमक्रियमाणां देशनां श्रुत्वा वैश्रमणमनस्येवं विसंवादो जातोऽहो एतेषां विशेषपुष्टितिधरं शरीरं, यतिवर्णनं चेदृशमिति वैश्रमणमनोवितर्क ज्ञात्वा गौतमस्तदा पुंडरीकाध्ययनं प्ररूपितवान् तथा च आम एणे आगळ वधवाना असामर्थ्यने लड क्लेश पामता हता त्यां गौतमे त्यां जड़ने सूर्यना किरणोना अवलंबन वढे ए | अष्टापदपर आरोहण करवा मांडयुं. त्यारे ते त्रणे तापसेा विचार करवा लाग्या के - 'अति स्थूल शरीरवाळा आ अष्टापद उपर केम आरोहण करी शकशे? ज्यां चडवाने अमें तपस्वी अशक्त थया' आम ते त्रणे विचार करता जोड़ रह्या छे तेटलामां गौतम तो एक | क्षणमात्रमा ए अष्टापद पर्वतना शिखर उपर आरूढ थया. आ जोड़ ए त्रणे तापसोए विचार्य के 'ज्यारे ए उतरशे त्यारे आपणे त्रणे एना शिष्यो पशुं ? गौतमस्वामी अष्टापदपर्वत उपरना प्रासाद मध्ये पहोंच्या त्यारे त्यां आवेली-पोतपोताना वर्ण परिमाण युक्त चोवीशे तीर्थकरोनी प्रतिमाओनुं वंदन कर्यु अने ते प्रतिमाओनी- 'जगदना चिंतामणि, जगत्ना नाथ, जगतना गुरु तथा जगत्ना रक्षण हार ! इयादि वाक्यो वडे-स्तुति करीने पूर्वदिशा तरफ आवेला एक पार्थिवशिलापट्ट उपर अशोक वृक्षने नीचे एक रात्रि निवास कर्यो. अहीं इन्द्रलोकपाल वैश्रमण त्यां चेत्योनुं वंदन करवा आवेला ते पण दरेक चैत्यांना वंदन करी एज अशोक वृक्षतळे आल्या. ते गौतमस्वामीने वंदीने आगळ बेठा त्यारे तेनी आगळ गौतमे कहेवा माड्युं के 'धर्म अर्थ तथा काम आ त्रण पुरुषार्थ हे, | तेमां अर्थ तथा कामनो साधक होइ धर्म प्रधान गणाय के ए धर्म देव तथा गुरुनी भक्तिमां अनुराग थवाथी लाभे छे, देव तो सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, अष्टादश दोष रहित छे, अने गुरु तो शुभ लक्षण साधुओ होय छे. साधुओ शत्रु मित्रमां समताधारी, लोष्टमाटीनुं For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्य०१० ॥१८५॥

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