Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्ययन सूत्रम् ॥२९५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रहेतो. पण घडपण लागीगयेल तेथी कांइ काम न करी शके एटले स्वजन तेनो अनादर करे. एम स्वजनना अपमानथी कंटाळी | एकवखते कोइने पूछया गाळ्या वगरज कौशांबी नगरी जड़ पहोंच्यो. तत्र वर्षमेकं यावद्रसायनं भक्षितवान् ; ततः सोऽत्यंत बलवान् जातः उज्जयिन्यां राजपर्षदि मल्लमहे प्रवर्तमाने पुनर्नवागतयौवनेनादृणमल्लेन समागल राज्ञो नीरंगणनाम महामलो जित:; राज्ञा तु मदीयोऽयं मल्ल आगंतुकेनानेन | मल्लेन जित इति कृत्वा न प्रशंसितः; लोकोऽपि राजप्रशंसामंतरेण मौन भाग्जातः; अट्टणस्तु स्वस्वरूपज्ञापनार्थ सभापक्षिणः प्रत्याह भो भो पक्षिणो बंतु ? अट्टणेन नीरंगणो जित:. त्यां एक वर्षसुधी रही एवं कंड रसायन सेवन कर्फ्यू जेथी पाछो अत्यंत बलवान् थयो. फरी उज्जयिनीमां आवी राजसभामां मल्लकुस्तीनो ज्यारे प्रसंग आव्यो त्यारे जाणे फरीने नव यौवन पाम्यो डोव एवा ए अट्टणमल्ले आवीने राजाना नीरांगण नामना | महामल्लने कुस्तीमां जीत्यो. राजाए ' आ मारा मल्लने आणे आगंतुक [ विदेशी ] मल्ले मार्यो ' एम जाणीने तेने न वखाण्यो तेम जोवा मळेला लोकोए पण राजाए प्रशंसा न करी तेथी बधा मौन सेवी रथा. अट्टणम पोतानुं स्वरूप जणाववा माटे सभामांना पक्षिओने कहां के हे पक्षियो बोलो के अट्टणे निरंगणने जीत्यो. ततो राज्ञोपलक्षितो मदीय एवायमहणमल इति कृत्वा सत्कृतः यद्रव्यं चास्मै राज्ञा दत्तं स्वजनस्तं तथाभूतं श्रुत्वा तत्सन्मुखमागत्य मिलितः, सत्कारादि च चकार, अट्टणेन चिंतितं द्रव्यलोभादेते मम सांप्रते सत्कारं कुर्वति, For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्ययन ४ ॥२९५ ॥

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