Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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परीषह - परीषहों का स्वरूप - क्षुधा परीषह kakakakakakakakakkkkkkkkxxxkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk प्रज्ञा परीषह, अण्णाण परीसहे - अज्ञान (अल्प ज्ञान का) परीषह, दंसण परीसहे - दर्शन (सम्यक्त्व) परीषह।
परीषहों का स्वरूप . परीसहाणं पविभत्ति, कासवेणं पवेइया। तं भे उदाहरिस्सामि, आणुपुव्विं सुणेह मे॥१॥
कठिन शब्दार्थ - परीसहाणं - परीषहों का, पविभत्ति - प्रविभक्ति - विभाग, उदाहरिस्सामि - कहूँगा, तं - उसे, भे - तुम्हें, आणुपुब्बिं - अनुक्रम से, सुणेह - सुनो, मे - मुझ से। . . .. भावार्थ - काश्यप गोत्रीय भगवान् महावीर स्वामी ने परीषहों का जो विभाग फरमाया है, उसे आप लोगों से कहूँगा, क्रमशः मुझ से सुनो।
.. १. सुधा परीवह . दिगिंछा परिगए देहे, तवस्सी भिक्खू थामवं।
ण छिंदे ण छिंदावए, ण पए ण पयावए॥२॥
कठिन शब्दार्थ - दिगिंछा परिगए - क्षुधा परिगत-क्षुधा से व्याप्त, देहे - शरीर में, - तवस्सी - तपस्वी, भिक्खू - साधु, थामवं - बलवान् - संयम बल या मनोबल से युक्त,
ण छिंदे - छेदन न करे, ण छिंदावए - दूसरों से छेदन नहीं करावे, ण पए - स्वयं न पकावे, ण पयावए - न दूसरों से पकवाए।
भावार्थ - भूख से शरीर के पीड़ित होने पर भी संयम बल वाले तपस्वी साधु फलादि का स्वयं छेदन नहीं करे, दूसरों से छेदन नहीं करावे, अन्न आदि स्वयं न पकावे दूसरों से न पकवावे।
- विवेचन - आगमकारों ने साधु के उक्त २२ परीषहों में क्षुधा परीषह को प्रथम स्थान दिया है, क्योंकि अन्य कष्टों की अपेक्षा क्षुधा का कष्ट अधिक बलवान् है और अन्य परीषहों की अपेक्षा वह दुर्जेय है। संयमशील साधु उस क्षुधा को समभाव पूर्वक बिना किसी प्रकार का आर्तध्यान किये हुए सहन करे।
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