Book Title: Updesh Siddhant Ratanmala
Author(s): Nemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
Publisher: Swadhyaya Premi Sabha Dariyaganj

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Page 269
________________ जिनके साधर्मी से तो अहित-भाव हो और बन्धु-पुत्रादि से अनुराग हो उनके सिद्धान्त के न्याय से प्रकटपने सम्यक्त्व न जानना क्योंकि सम्यक्त्व के अंग तो वात्सल्यादि भाव हैं सो जिनके साधर्मी से प्रीति नहीं है उनके सम्यग्दर्शन नहीं है पुत्रादि से प्रीति तो मोह के उदय में सब ही के होती है, उसमें कुछ भी तो सार नहीं है-ऐसा जानना।

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