Book Title: Tirthankar Varddhaman
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 47
________________ अतः अनेक राजाओं की ओर से महावीर के साथ अपनी-अपनी राजकुमारी के पाणिग्रहण प्रस्ताव आने लगे। कलिंग-नरेश राजा जितशत्रु की सुपुत्री राजकुमारी यशोदा उन सब राजकुमारियों में त्रिलोक सुन्दरी एवं सर्वगुण सम्पन्न नवयवती थी; अतः राजा सिद्धार्थ और त्रिशला ने वर्द्धमान कुमार का पाणिग्रहण उसी के साथ करने का निर्णय किया; तदनसार वे राजकुमार का विवाह वहुत बड़े समारोह के साथ करने के लिए तैयारी करने लगे। अपने विवाह की वात जव कुमार महावीर को ज्ञात हुई तो उन्होंने उसे स्वीकार न किया। माता-पिता ने बहुत कुछ समझाया परन्तु कुमार वर्द्धमान विवाह बन्धन में बंधने के लिए तत्पर न हुए। यौवन के समय स्वभाव से नर-नारियों में काम-वासना प्रवल वेग से उदीयमान हो उठती है, उस कामवेग को रोकना साधारण मनुष्य के सामर्थ्य से बाहर हो जाता है। मनुष्य अपने प्रवल पराक्रम से महान् वलवान वनराज सिंह को, भयानक विकराल गजगज को वश में कर लेता है, महान योद्धाओं की विशाल मंना पर विजय प्राप्त कर लेता है, किन्तु उसे कामदेव पर विजय पाना कठिन हो जाता है । मंसार में पुरुष-स्त्री, पश-पक्षी आदि समस्त जीव कामदेव के दाम वने हा है। इसी कारण नर-नारी का मिथुन (जोड़ा) काम-शान्ति के लिए जन्म-भर विषय-वासना का कीड़ा बना रहता है। उस अदम्य काम "जिनेन्द्र वीरम्य ममुद्भवोन्मवे तदागनः कुण्डपुरं मुहुन्पर: मुपूजिता कुण्डपुरस्यभूभृता नृपाध्यमाबण्डल तुल्य विक्रम :।। यशोदयायां मुतया यशोदया पवित्रया वीर विवाह मंगलं अनेक कन्या परिवारया रुहत्ममीक्षितुं तंग मनोरथं नदा ।। स्वितावना तपसि स्वयं भुवि प्रजात कैवल्यविशाललोचने । जगति भूत्यै विहरत्यपि मिति शिति विहाय स्थित वास्तपम्ययम् ।। -हरिवंश पुराण, ६६/६.

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