Book Title: Tirthankar Mahavira Smruti Granth
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Jivaji Vishwavidyalaya Gwalior

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Page 367
________________ वाले पुरुष ने विधर्मी शक (अलाउद्दीन) को अपनी पुत्री ... अपनी विद्वत्ता और राष्ट्र प्रेम के कारण नयचन्द्र तथा अपने शरण में आए विधर्मी व्यक्तियों (माहि- सूरि ने तत्कालीन तोमर राजा, उसकी "सामाजिक मसाहि) तक को न देने के लिए राजलक्ष्मी, सुखविलास संसद" तथा अन्य नागरिकों को बहुत अधिक प्रभावित और अपने जीवन तक को तृणवत् समझकर उसका किया था। इस प्रभाव का उपयोग भट्टारक यशःकीर्ति, त्याग कर दिया। जैन श्रेष्ठ और श्रावकों ने ग्वालियर में जैन धर्म को प्रतिष्ठित करने में बहुत बुद्धिमतापूर्वक किया। "इसलिए राजन्यजन के मन को पवित्र करने की इच्छा से मैं उस वीर के उक्त गुणों के गौरव से प्रेरित वीरमदेव तोमर के राज्यकाल में ही कालपी के होकर उसका थोड़ा-सा चरित वर्णन करता हूँ।" सुल्तान ग्वालियर के तोमर राज्य को घेर रहे थे और उसे हड़प जाना चाहते थे। कालपी के सुल्तानों का नयचन्द्र सूरि ने वीरमदेव तोमर के समक्ष हम्मीर- राज्य ग्वालियर के पास भाण्डेर तक फैल गया था। देव का आदर्श रखा था । अपने आत्मसम्मान की रक्षा सन 1435 ई. में ग्वालियर के तोमर राजा डूंगरेन्द्रसिंह के लिए तथा शरणागत का प्रतिपालन करने के लिए, ने कालपी के सुल्तान मुबारकशाह को भाण्डेर पर पूर्णतः भले ही वह किसी धर्म का अनुयायी हो, युद्ध में प्राण पराजित कर दिया। इस युद्ध में डूगरेन्द्रसिंह को बहुत देना श्रेयस्कर है। महाकवि के इस उद्बोध ने उस युग अधिक धन भी मिला था और प्रतिष्ठा भी । इस के अनेक राजन्यजन के मनों को पवित्र किया था और विजय के उपलक्ष्य में ग्वालियर में बहत बड़े समारोह वे अपनी जीवन-पद्धति की रक्षा के लिए युद्धरत मनाए गए । महाराज इंगरेन्द्रसिंह ने अपने राजकवि विष्णुदास से पांडव चरितु (महाभारत) की रचना कराई। उधर स्थानीय जैन समाज ने भी इस उत्सव नयचन्द्र सूरि की दूसरी रचना रंभामंजरी है। में पर्ण योगदान दिया। साह खेतसिंह के पुत्र कमलसिह रम्भामंजरी में सूत्रधार ने व्यक्त किया है कि "ग्रीष्म । ने ग्यारह हाथ ऊँची जैन प्रतिमा का निर्माण कराया ऋतु की विश्वनाथ यात्रा के लिए एकत्रित भद्रजनों का और विजय की इस शभ वेला में, महाराज डूगरेन्द्रसिंह प्रबन्ध-नाट्य द्वारा मनोरंजन किया जाए।" नयचन्द्र द्र से इसके प्रतिष्ठोत्सव के लिए आज्ञा मांगी। राजा ने को ज्ञात था कि जिस समाज के लिए वह नाटक लिख स्वीकृति देते हए कहा, "आप इस धार्मिक कार्य को रहा है, उसमें अधिकांश विश्वनाथ का भक्त है, अतएव सम्पन्न कीजिए। मझसे आप जो मांगेंगे सो दूंगा।" उसने उसके अभिनीत किए जाने के लिए विश्वनाथ यात्रा का समय ही सुनिश्चित किया। रंभामंजरी के इसी प्रतिष्ठोत्सव समारोह के अवसर पर प्रसिद्ध मंगल श्लोक में विष्णु के वराह रूप की वंदना की गई जैन कवि पण्डित रइधू ने अपनी प्रथम रचना सम्मतहै । जैन मुनि द्वारा यह मंगल श्लोक साभिप्राय लिखा गुण-निहान प्रस्तुत की। गया था और वह नयचन्द्र सूरि की महान राष्ट्रीय भावना का द्योतक है। पंक में फंसी विश्वा-पृथ्वी को दंष्ट्राग्र सन् 1435 ई. की इस घटना ने ग्वालियर के पर उठाकर उद्धार करनेवाली शक्ति की तत्कालीन इतिहास को बहत अधिक प्रभावित किया। अगले 40 भारत को परम आवश्यकता थी।15 वर्षों में दिल्ली, हिसार, चन्दवार आदि स्थलों से अनेक हुए थे। 15. यह स्मरणीय है कि वराहावतार को ग्वालियर के तोमरों ने अपना राजचिह्न बनाया था। ... ३३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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