Book Title: Tirthankar Ek Anushilan Author(s): Purnapragnashreeji, Himanshu Jain Publisher: Purnapragnashreeji, Himanshu Jain View full book textPage 4
________________ आशीर्वचन अनन्त करुणा निधान, कृपा निधान, परम वीतरागी तीर्थंकर परमात्मा धर्मसंघ के पिता हैं। इस विश्व की सर्वाधिक पुण्यवंत और अतिशयकारी विभूतियों में तीर्थंकर परमात्मा का स्थान सर्वोत्कृष्ट है। ऐसी विश्ववंद्यविभूति द्वारा संस्थापित 'तीर्थ' युगों-युगों से विश्व को आलोकित करता आया है। विशिष्ट पुण्योदय से इस दुर्लभ मानवजीवन में हमें भी ऐसे तारक तीर्थंकर की कल्पतरु-सम-छाया प्राप्त हुई है। हम प्रतिदिन ‘णमो अरिहंताणं' का उच्चारण कर अरिहंत यानी तीर्थंकर प्रभु को नमस्कार करते हैं किन्तु कई व्यक्ति अरिहंत परमात्मा के जीवन से अनभिज्ञ हैं, उनके व्यक्तित्व से अपरिचित हैं। आज के युवा वर्ग में तीर्थंकर परमात्मा के बाह्य और आभ्यंतर रूप तथा स्वरूप को जानने की तीव्र जिज्ञासा है। तीर्थंकर कौन होते हैं, कैसे बनते हैं, कैसे जीते हैं, हमारे लिए कैसे उपकारी हैं, क्यों वंदनीय-पूजनीय-स्तवनीय हैं, इत्यादि अनेकानेक प्रश्न कई लोगों के मानस पटल पर आते हैं। शासनदीपिका महत्तरा साध्वी सुमंगलाश्री जी म. की प्रशिष्या विदुषी साध्वी पूर्णप्रज्ञाश्री जी ने पाठकवृन्द की ऐसी भावना को मूर्तरूप देते हुए तीर्थंकर विषयक आगमों-ग्रंथों-शास्त्रों में यत्रतत्र बिखरी सामग्री का यथोचित संकलन कर उसे सरल-सरस भाषा में 'तीर्थंकर : एक अनुशीलन' पुस्तक रूप में प्रस्तुत किया है। उनके इस महनीय प्रयास की भूरि-भूरि अनुमोदना। उनके इस पुरुषार्थ से सम्यग्ज्ञान का प्रचार होगा एवं पाठकगण लाभान्वित होंगे, यही भावना..... - विजय नित्यानन्द सूरिPage Navigation
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