Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Sumermal Muni
Publisher: Sumermal Muni

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Page 232
________________ भगवान् श्री महावीर/२१३ सर्वज्ञता का उन्नीसवां वर्ष चातुर्मास संपन्न कर भगवान् साकेत, श्रावस्ती आदि नगरों में ठहरते हुए कापिल्यपुर पधारे। वहां सात सौ परिव्राजकों के साथ अम्बड़ परिव्राजक भगवान् के उपदेश को सुनकर श्रावक बना। वह परिव्राजक वेश में रहकर श्रावकाचार का पालन करता था। उसे वैक्रिय लब्धि प्राप्त थी, जिससे कई रूप बनाकर पारणा हेतु सौ घरों में जाता। लोगों में बड़ा कुतूहल पैदा होता था। इस वर्ष भगवान् ने वैशाली में चौमासा किया। सर्वज्ञता का बीसवां वर्ष ___पावस प्रवास संपन्न कर वाणिज्य ग्राम पधारे । वहां पार्श्व संतानीय गांगेय मुनि ने भगवान् से विविध प्रश्न किये । प्रश्नोत्तर के बाद उन्होंने प्रभु के पास पंच महाव्रत रूप दीक्षा अंगीकार की। इस वर्ष का पावस भी वैशाली में किया। सर्वज्ञता का इक्कीसवां वर्ष वैशाली से विहार कर भगवान् राजगृह पधारे। वहां मदुक श्रावक ने कालोदायी आदि अन्यतीर्थिकों के प्रश्नों का यौक्तिक समाधान किया। भगवान् ने मदुक के तत्त्वज्ञान की प्रशंसा की। प्रभु ने राजगृह में वर्षावास किया। सर्वज्ञता का बाइसवां वर्ष __ आर्य जनपद में परिव्रजन करते हुए भगवान् ने पावस प्रवास नालंदा में किया। अन्यतीर्थिक कालोदायी, शैलोदायी आदि ने भगवान् से विविध चर्चा के बाद मुनि दीक्षा स्वीकार की । गौतम स्वामी से चर्चा करने के बाद पार्श्व परंपरा के मुनि उदक महावीर के धर्मशासन में सम्मिलित हो गये। सर्वज्ञता का तेईसवां वर्ष नालंदा से विहार कर प्रभु वाणिज्य ग्राम पधारे । वहां प्रभु के प्रवचन से प्रभावित होकर सुदर्शन श्रेष्ठी ने संयम स्वीकार किया। मुनि सुदर्शन ने बारह वर्ष चारित्र पर्याय पालकर निर्वाण को प्राप्त किया। इस वर्ष भगवान् ने वैशाली नगर में चातुर्मास बिताया। सर्वज्ञता का चौबीसवां वर्ष वैशाली से विहार कर भगवान् कौशल देश की प्रसिद्ध नगरी साकेत पधारे । वहां राजा किरात ने भगवान् के दर्शन किये, देशना सुनी और विरक्त होकर साधु बन गये। वहां से मथुरा, शौर्यपुर, नंदीपुर नगरों को अपनी चरणधूलि से पावन करते हुए मिथिला नगरी पधारे। वहीं चातुर्मास संपन्न किया। सर्वज्ञता का पच्चीसवां वर्ष मिथिला से भगवान् राजगृह पधारे। वहीं पावस प्रवास किया। गणधर प्रभास

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