________________ तत्त्वसार अथ मोहोदये सति मनो न म्रियते इति ब्रुवन्त्यग्ने श्रीदेवसेनदेवाःमूलगाथा—ण मरइ तावेत्थ मणो जाम ण मोहो खयं गओ सव्वो। खीयंति खीणमोहे सेसाणि य घाइकम्माणि // 64 // संस्कृतच्छाया-न नियते तावदित्यं मनो यावन्न मोहो क्षयं गतः सर्वः। . क्षीयन्ते क्षीणमोहे शेषाणि च घातिकर्माणि // 64 // टीका–ण मरइ तावेत्थ मणो' इत्यादि, पदखण्डनारूपेण व्याख्यानं क्रियते वृत्तिकर्ता मुनिना / तावत्कालमित्थममुना प्रकारेण / 'अत्थ' इति पाठे अस्मिन् ध्याने पुरुष वा मनश्चित्तं विकल्परूपं न म्रियते न विलीयते। कियन्तं कालमिति ? 'जाम ण मोहो खयं गओ सम्यो' यावत्कालं सर्व: सपरिवारो मोहोन क्षयं गतो भवति / 'खोयंति' क्षीयन्ते क्षयं यान्ति कस्मिन ? क्षीणमोहे / क्षीणः क्षयं गतो मोहो यस्माद् यस्मिन् वा तत् क्षीणमोहं गुणस्थानम्, तस्मिन् क्षीण आगें कहै हैं-मनकू मरे बिना मोहादिक नांही मरे हैं। अर मन मरें समस्त कर्म क्षय होय है भा० व०-तावत् काल या प्रकार या थानविर्षे वा पुरुषविर्षे मन जो चित्तके विकल्परूप नांही मरै है, नांही विलय होय है। कितने काल ? या प्रकार जितने काल सर्व परिवार सहित मोह क्षयकू नाही प्राप्त होय है। अर मोहकू क्षीणमोह द्वादशम गुणस्थानविर्षे मोहकू क्षीण होत संतें घातिया कर्म द्रव्यकर्म ज्ञानावरणादिक। कितने ? समस्त घातिया कर्म / या प्रकार जाणि मोहका वशीकरणविर्षे यत्न कर्तव्य है / कोन कू? भव्यजननिकौं / यो भावार्थ जानना // 6 // अब आगे श्रीदेवसेनदेव कहते हैं कि मोहके उदय होनेपर मन नहीं मरता है अन्वयार्थ-(जाम) जबतक (सव्वो मोहो) सम्पूर्ण मोह (खयं) क्षयको (ण गओ) नहीं प्राप्त होता है, (ताव) तबतक (इत्थ) इस आत्माका (मणो) मन (ण मरइ) नहीं मरता है। (खीणमोहे) मोहके क्षीण होनेपर (सेसाणि य) शेष भी (घाइकम्माणि) घातीकर्म (खीयंति) नष्ट हो जाते हैं। टीकार्थ-'ण मरइ तावेत्थ मणो' इत्यादि गाथाका टीकाकार मुनि अर्थ व्याख्यान करते हैं-उतने कालतक इस प्रकारसे मन नहीं मरता है। अथवा 'इत्थ' पाठके स्थानपर 'अत्थ' पाठ मानने पर यह अर्थ होता है-इस ध्यानमें अथवा ध्यान करनेवाले पुरुषमें विकल्परूप मन नहीं मरता है अर्थात् आत्मामें विलीन नहीं होता है। ... प्रश्न-कितने कालतक नहीं मरता है ? उत्तर-'जाम ण मोहो खयं गओ सव्वो' अर्थात् जितने कालतक सपरिवार सर्व मोह क्षय नहीं हो जाता है, तबतक मन नहीं मरता है / / पुनः सर्वमोह परिवार क्षयको प्राप्त होता है। प्रश्न-किसमें क्षयको प्राप्त होता है ? उत्तर-क्षीणमोह नामक बारहवें गुणस्थानमें क्षयको प्राप्त होता है।