Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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७।१७ ]
सप्तमोऽध्यायः * उक्त सात व्रतों के गुणव्रत और शिक्षाव्रत इस प्रकार दो विभाग हैं
दिविरति, उपभोग-परिभोग परिमारण व्रत और अनर्थदंड विरमण ये तीन गुणवत हैं । क्योंकि ये पांच अणुव्रतों में गुण-लाभ करते हैं। इन तीन गुणवतों से पाँच अणुव्रतों का परिपालन सरल बनता है। देशविरति, सामायिक, पौषधोपवास तथा अतिथि संविभाग ये चार शिक्षाव्रत हैं। इनका पालन करने से चारित्र-संयमधर्म की शिक्षा यानी अभ्यास होता है।
* यहां पर उक्त सात व्रतों का जो क्रम है, उससे आगमसूत्र में भिन्न-पृथग् क्रम आता है। ___ जैसे-आगम में दिग्विरति, उपभोग-परिभोग परिमाण, अनर्थदंड विरति, सामायिक, देशविरति (-देशावगासिक), पौषधोपवास तथा अतिथि संविभाग यह क्रम' बताया है ।
देशविरति, उपभोग-परिभोग परिमाण और पौषधोपवास इन तीनों के लिए पागम ग्रन्थों में क्रमश: देशावगासिक. भोगोपभोग परिमारण तथा पौषधोपवास' नाम हैं।। ७-१६ ।।
* संलेखनायाः विधानम् के ॐ मूलसूत्रम्मारणान्तिकी संलेखनां जोषिता ॥ ७-१७॥
* सुबोधिका टीका * मूलवतोत्तरव्रतमेव सल्लेखनाव्रतम् । कालसंहननदौर्बल्योपसर्गदोषाद् धर्मावश्यकपरिहारिण वाभितो ज्ञात्वावमौदर्य-चतुर्थषष्ठाष्टमभक्तादिभिः प्रात्मानं संलिख्य संयम प्रतिपद्योत्तमव्रतसम्पन्नश्चतुर्विधाहारं प्रत्याख्याय यावज्जीवं भावनानुप्रेक्षापर: स्मृतिसमाधिबहुलो मारणान्तिकी संलेखनां जोषिता उत्तमार्थस्याराधको भवतीति ।
१ पहले तीन गुणवत आते हैं, बाद में चार शिक्षाव्रत। इस दृष्टि से पागम ग्रन्थ में यह क्रम रखने में पाया
हो, ऐसा लगता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में दिग्विरति के बाद देशविरति (देशावगासिक) व्रत का ग्रहण क्यों किया? इस सम्बन्ध में लगता है कि-पागमसूत्र ग्रन्थों में देशावगासिक व्रत में दिविरति व्रत के उपलक्षण से समस्त व्रतों का संक्षेप कथन करने का विधान है। अतः यह व्रत दिविरति के संक्षेप रूप होने से दिविरति के बाद उसका क्रम आ जाय यह उचित समझा होगा, इस दृष्टि से दिविरति के
पश्चात् देशविरति यानी देशावगासिक व्रत का क्रम रखा हो। २ देश में-दिगविरति में रखे हुए दिशा के प्रमाण से कम देश में अवकाश में रहना, वह देशावकाश है दिग्विरति में रखे हुए दिशा के प्रमाण का संक्षेप करने में आवे वह देशावगासिक है। एक वस्तु एक बार ही भोग सके वह मोग तथा बारंबार मोग सके वह उपभोग है। जिसमें भोग तथा उपभोग दोनों का परिमाण करने में माता है, इसलिए वह मोगोपभोग परिमारण कहा जाता है। जो धर्म की पुष्टि करता है, वह पौषष है। देशावगासिक प्रादि तीन का शब्दार्थ सामान्य है। भावार्थ तो पूर्व के अनुसार ही है।