Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 75
________________ ६६ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् करने की इच्छा, मारने की इच्छा ईर्ष्या, असूया (गुण में दोषारोपण) वगैरा मानसिक, इससे विपरीत वे शुभ योग जानने । [२] [३] [४] स आस्रवः । पूर्वोक्त योग वह आश्रव (कर्म आने के कारण ) हैं । शुभः पुण्यस्य । शुभ योग वह पुण्य का आश्रय-बन्ध हेतु है । अशुभः पापस्य । अशुभयोग पाप का आश्रत्र है । [५] सकषायाकषाययोः साम्परायिकेर्यापथयोः । सकषायी (क्रोधादि वाले) को साम्परायिक ओर अकषायी ( कषायरहित) को ईर्यापथिक (चलने सम्बन्धी एक समय की स्थिती का ) आश्रव बंध हेतु होता है । [६] श्रव्रतकषायेन्द्रियक्रियाः पञ्चचतुःपञ्चपञ्चविंशतिसङ्ख्याः पूर्वस्य भेदाः । इन पूर्वोक्त (साम्परायिक) आश्रवों के भेद भवत कषाय इन्द्रिय और क्रिया हैं. उनके सिलसिलेवार पांच, चार, पांच और पचीस भेद हैं । हिंसा, असत्य, चौरी, मैथुन, परिग्रह ये पांच अव्रत । क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार कषाय । इन्द्रिय पांच और पच्चीस क्रिया. क्रियायें २५ ये हैं १ सम्यक्त्व, २ मिध्यात्व, ३ प्रयोग, ४ समादान, ५ ईर्यापथ, ६ काय, ७ अधिकरण ८ प्रदोष, ६ परितापन, १० प्राणातिपात, ११ दर्शन (दृष्टिः), १२, स्पर्शन, १३ प्रत्यय, १४ समन्तानुपात १५ अनाभोग, १६ स्वहस्त, १७ निःसर्ग, (नैशत्र), १८ विदारण १६ आनयन, २० अनवकांक्षा, २१ आरम्भ, २२

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