Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानिर्युक्तिश्व अ०१
नवतत्वनिरूपणम् ३१
तत्राऽण्डजाः अहि-गोधा - सरटा - गृहगो धिका - मत्स्य - कच्छप - शिशुमारादयः, हंस-चाप शुक—गृघ्र – श्येन—पारावत—वायस - मयूर - मङ्गु - [जल - विहायो गतिर्जलकाकिका - ] बक-बलाका सारिकादयश्च ।
पोतजाः -- शल्लक–हस्ति-श्व – बिलावक - शश - नकुलमूषिकादयः, जलौका - वल्गुलि - भारण्ड–पक्षिविरालादयश्च । जरायुजाः - मनुष्य – गो-महिषा - Sजा - ssविक—–गर्दभो-ष्ट्र-हरिण - चमर - शूकर- गवय--- -सिंह- व्याघ्र - द्वीपि - धान - क्रोष्टु - मार्जारादयो भवन्ति । एतेषां त्रयाणामपि - अण्डज - पोतज- जरायुजानां गर्भाज्जन्म भवति ।
रसजा—विकृतरसे समुत्पन्नाः कृम्यादयः । संस्वेदजाः - मत्कुणादयः । संमूच्छिमा:माता–पितृसंयोगं विना जायमानाः गर्भव्युत्क्रान्तिकादिभिन्नाः। उद्भिज्जाः - पृथिवीं भित्वा जायमानाः । औपपातिका:- नारक - भवनपति – वानव्यन्तर - ज्योतिष्क - वैमानिकादयः सिद्धवर्जिता स्त्रसा व्यपदिश्यन्ते । सिद्धाः - न स्थावराः - नापि त्रसाः सन्ति, संमूर्च्छनजाश्चात्र द्वीन्द्रियादि तिर्यङ्–मनुष्यपर्यन्ताः अवगन्ताव्याः ।
जरायु तावद्गर्भवेष्टक चर्मपुटकमुच्यते, तस्मात् जाता जरायुजा भवन्ति । पोता:शावकाः एवजाताः पोतजाः - शुद्ध प्रसवा भवन्ति, न तु - जरायुप्रभृतिभिर्वेष्टिता भवन्तीति भावः ।
सर्प. गोह, गिरगिट, छिपकली, मच्छ, कछुवा, नक्र, शिशुमार आदि तथा हंस, चाष, शुक, गिद्ध, श्येन (वाज), कबूतर, काक, मयूर, जलकाक, बगुला, बतक, मैना अदि जीव अण्डज हैं । शल्लक, हाथी. कुत्ता, विलाव, खरगोश, नौला, चूहा, जौक, वल्गुलि और भारण्ड पक्षी तथा विराल आदि पोतज होते हैं ।
मनुष्य, गाय, भैंस, बकरी, भेड़, गाय, ऊँट, हरिण, चमर, शूकर, गवय (रोभ) सिंह, व्याघ्र द्वीपिक, श्वान, गीदड़, मार्जार आदि जरायुज हैं । इन अण्डज, पोतज और जरायुज जीवों का गर्भ जन्म होता है ।
विकृत हुए दूध आदि रसों में उत्पन्न होने वाले कृमि आदि रसज कहलाते हैं । खटमल आदि जीव संस्वेदज हैं। माता-पिता के संयोग के बिना ही उत्पन्न होते हैं और जो गर्भजों से भिन्न होते हैं, वे संमूर्छिम हैं । पृथ्वी को भेद कर उत्पन्न होने वाले उद्भिज्ज कहलाते हैं । नारक भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क वैमानिक आदि, सिद्धों को छोड़कर औपपातिक कहलाते हैं । ये सभी त्रस हैं । सिद्ध भगवान् न त्रस हैं और न स्थावर ही द्वीन्द्रिय आदि तियैच और कतिपय मनुष्य संमूर्छिम होते हैं
।
गर्भ को
करने वाली चमड़े की पतली झिल्ली को जरायु (जड़ -- जेर) कहते हैं । उससे उत्पन्न होनेवाले जीव जरायुज होते हैं । पोत का अर्थ है शावक । जो जरायु से वेष्टित नहीं होते और जन्म लेते ही चलने-फिरते लगते हैं, वे जीव पोतज कहलाते हैं ।
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧