Book Title: Tattvartha Part 01 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ मिलने का पत्ता अ. भा. श्वे. स्थानक वासी जैन शास्त्रोद्धार समिति . गरेडीया कूवारोड राजकोट (सौराष्ट्र) Published by : Shri Akhil Bharat S. S Jain Shastraddhara Samiti, Garedia Kuva, Road, RAJKOT, (Saurashtra), W. Ry, India. ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यवज्ञाम्' जानन्ति ते किमपि तान् प्रति नैपयत्नः । उत्पत्स्यतेऽस्ति मम कोऽपि समान धर्मा. कालोह्ययं निरवधिविपुला च पृथ्वो ॥१॥ हरिगीतिच्छन्दः करते अवज्ञा जो हमारी यत्न ना उनके लिए. जो जानते हैं तत्त्व कुछ फिर यत्न ना उनके लिये, जनमेगा मुझसा व्यक्ति कोई तत्व इससे पायगा, है काल निरवधि विपुल पृथ्वी ध्यान में यह लायगा ॥२॥ मूल्य रु. ३५ प्रथम आवृत्ति. १००० वोर संवत् २४९९ विक्रम संवत् २०२९ इस्वीसन् १९७३ मुद्रका रामानन्द प्रिन्टिंग प्रेस कांकरिया रोड, अहमदाबाद-२२ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્રઃ ૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 344