Book Title: Tattvagyan Mathi
Author(s): Shrimad Rajchandra, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 243
________________ १२७ छ्ये स्थानक समजावीने हे सद्गुरु देव । सारे देहादिया आरमाने जेम म्यानयो सरवार जुदी गादीन यतापोए तेम म्पष्ट जुनो वताव्यो, आपे मपाई पारे पदी एयो उपकार पर्यो । १२८ मे दान धा छ स्थानवी समाय छे पिन परीने विगारयापी पोई पण प्रकारनो सय रहे गहीं १२९ श्रागाने पोत म्यम्पनु मान नही एवो माशे का राग पो गद्गुरु सेवा सना काई माचा पपया पिपुग या नपी, मुदगुरागाए पाल्या समान सानु शाई पप्य भगा, अन विधार तया निदिध्यासन जेयु भाई तेन औरण नपा ३० को परमापा , रो, तो मापो पुरा गे मने मधमा पानि नामईने यान्मापने छेगे १ आमा भरप: अग ऐ सिय के एवी भिमुप मामी गामलीन साधन तम्या योग्य नगी

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