Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 484
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट-सात : एक जब्तशुदा लेख भगवान महावीर और महात्मा गांधी प्रस्तुत लेख उर्दू 'जैन प्रदीप' के अप्रैल एवं मई-जून 1930 के अंकों में उर्दू भाषा में ही छपा था। 'जैन प्रदीप' की स्थापना 1912 में बाबू ज्योतिप्रसाद जैन ने की थी। बाबू ज्योतिप्रसाद जैन अपने क्रान्तिकारी विचारों के कारण जैन समाज में 'समाज सुधारक' के नाम से विख्यात हुए हैं। नाटा कद, भरा-उभरा शरीर, भरी-झूगी मूंछे, चौड़ा ललाट, भीतर तक झांकती-सी आंखें, धीमा बोल, सधी चाल, सदैव शान्त मुख-मुद्रा, मामूली कपड़े के जूते, कमीज और कभी-कभी बन्द गले का कोट, सिर पर गांधी-टोपी और कभी-कभी तिरछा साफा, चौड़ा पाजामा, नियमित जीवन, मिलनसार और अपनों को सबकुछ करने को तैयार यह व्यक्तित्व था बाबू ज्योतिप्रसाद का। बाबू जी का जन्म आश्विन कृष्ण 10, वि0सं0 1939 (सन् 1882 ई0) को देवबन्द, जिला-सहारनपुर (उ0प्र0) में एक साधारण परिवार में हुआ था। बाल्यकाल में ही उन्हें जैन जागरण के दादा भाई बाबू सूरजभान वकील का संसर्ग मिला। वकील सा0 ने इस बालक में भविष्य को देखा और अपने पास रख लिया। जैन समाज में समाज-सुधार, पत्रकारिता, देशसेवा का बीजारोपण बाबू जी में यहीं से पड़ा। अपनी जबानी में बाबू जी लाला हरनाम सिंह के यहाँ मुनीम हो गये, जहाँ पहुँचकर वे बड़े अफसरों और जिले के बड़े आदमियों के संसर्ग में आये। वे देवबन्द में 'जोती मुनीम' के नाम से पहचाने जाने लगे। 1912 में 'जैन प्रदीप' की स्थापना और उसके सम्पादक होने के नाते वे 'जोती मुनीम' से 'जोती एडीटर' बन गये और अपने जीवन के अन्तिम समय तक वे इसी नाम से विख्यात रहे। इससे पूर्व बाबू जी 'जैन प्रचारक', 'जैन नारी हितकारी', 'पारस' जैसे पत्रों का सम्पादन कर चुके थे। जैन प्रदीप के सन्दर्भ में प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ0 कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' ने लिखा है- "जैन प्रचारक' के बाद. उन्होंने अपना 'जैन प्रदीप' मासिक निकाला, जिसके वे चपरासी भी थे और चेयरमैन भी। वे स्वयं डाक लाते, स्वयं उसका जवाब देते, आई-गई डाक रजिस्टर में चढ़ाते, लेख लिखते, कांट-छांट करते, पते लिखते, चिपकाते..... 'जैन प्रदीप' में उन्हें कभी आर्थिक लाभ नहीं हुआ, पर वह उनका क्षेत्र सारे जैन समाज को बनाये रहा, जिससे वे और 'जैन प्रदीप' दोनों निभते रहे। 1930 में 'गांधी जी और महावीर' नामक लेख के कारण सरकार ने जैन प्रदीप पर जो पाबन्दी लगाई उसी से वह बन्द हो गया, नहीं तो वह सदैव ठीक तारीख पर ही निकला।" बाबू जी 1920 में समाज से राजनीति में आये, उन दिनों वे सभी जलसों में शरीक होते और कांग्रेस संगठन को मजबूत बनाने में हिस्सा लेते। तिलक स्वराज फण्ड का चन्दा और भाषण उस युग की राजनीति के मुख्य अंश थे, जो बाबू जी करते थे। 1920 में वे जेल जाना चाहते थे पर सरकार ने गिरफ्तार नहीं किया। 1930 में वे पारिवारिक परिस्थितियों के कारण जेल नहीं जा सके पर आन्दोलन में पूरी निष्ठा से सक्रिय रहे। 1930 में जैन प्रदीप में उर्दू भाषा में (उन दिनों जैन प्रदीप उर्दू में ही निकलता था) 'भगवान् महावीर और महात्मा गांधी' लेख लिखा। इसके कई अंशों पर सरकार को कड़ी आपत्ति थी, फलतः सरकार - For Private And Personal Use Only

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