Book Title: Swarup Deshna Vimarsh
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti

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Page 206
________________ उपर्युक्त सभी चर्चा का निष्कर्ष यह है कि हम सभी जीव अनादिकाल से मोहाविष्ट होने के कारण धन-मकान-स्त्री-पुत्र आदि को अपना मानते हैं। शरीर और आत्मा का सच्चा स्वरूप न जानने के कारण इनमें भेद न जानते हुए शरीर को ही अपना स्वरूप मानते हैं। आत्मा के काम-क्रोध आदि विकारी भावों को अपना स्वरूप मानते हुए हम इन्हीं परिणामों में सदा-लिप्त रहते हैं जिसके कारण निरन्तर कर्म बन्ध होता रहता है तथा अनादि काल से जो हमारे ऊपर मोह का प्रभाव है वह कम नहीं हो पाता जिसके कारण हम न तो सम्यक दृष्टि बन पाते हैं और न व्रत आदि को धारण कर मोक्ष-मार्ग में अग्रसर होते हैं। ___ हमारा कर्तव्य तो यह है कि हम पूज्य आचार्य श्री द्वारा ‘स्वरूप देशना' में दिये गये प्रवचनों को अच्छी प्रकार पढ़ें, उनका बार-बार चिंतन करें और उनको परम उपकारी जानकर अपने हृदय में धारण करते हुए मोक्ष-मार्गी बनें । तब ही हमारा अनन्त काल से निरन्तर चलता आ रहा मोहाविष्टपना नष्ट हो सकता है। यदि वर्तमान में सारी अनुकूल परिस्थितियाँ मिलने के बावजूद भी हमने मोक्ष-मार्ग के लिए पुरूषार्थ नहीं किया, मोहाविष्टपने का त्याग नहीं किया तो हमारा मनुष्य पर्याय पाना व्यर्थ हो जायेगा। सच तो यह है कि इस स्वरूप देशना टीका का भली प्रकार मन लगाकर अध्ययन किया जाए तो हम अपने ऊपर अनादि कालीन मोह के प्रभाव को नष्ट करने में समर्थ हो सकते हैं। ******* 190 -स्वरूप देशना विमर्श Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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