Book Title: Swarna Sangraha
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 200
________________ ॥१६॥ घणा पुरुष बिगडे घणा गुणवंतीजी, गुणवंती जी। मत करो ऐसा सिनंगार बुद्धिवंतीजी ॥१७॥ सादी-सूदी रेवसुं मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । पालुं मैं शुद्ध आचार बुद्धिवंतीजी ॥१८॥ जुवा-सट्टा मत खेलजो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी। दुनिया में इज्जत नहीं थाय साहबजी ॥१९॥ भांग तमाखू मत पीवजो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । इनसं रोग हो जाय मारा साहबजी ॥२०॥ देवालिया कह बतलावसी मारा प्रीतमजी मारा प्रीतमजी । माने आसी लाज मारा साहबजी ॥२१॥ परनारी माता गिनो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । करो पर नारी का त्याग मारा साहबजी ॥२२॥ इज्जत बढने धन रेने मारा प्रीतमजी मारा प्रीतमजी कुल में लागे न दाग मारा साहबजी ॥२३॥ करजो सिर पर मत करो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । उलटा व्यापार दुःखदाय मारा साहबजी ॥२४॥ होली रो गीत मत गावजों मारा प्रीतमजी मारा प्रीतमजी, मती खेलो होली रो फाग मारा साहबजी ॥२५॥ सत पुरुषां रा काम नहीं मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । यह रूलियारां काम मारा साहबजी ॥२६॥ माता-पिता री सेवा करो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी, गुरुजीरा सुनो व्याख्यान 195

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