Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री वीतरागाय नमः॥ श्री जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री घासीलालबतिविरचितया समयार्थप्रबोधिन्याख्यया व्याख्यया समलङ्कृतम् ॥श्री-सूत्रकृताङ्गसूत्रम् ॥ (द्वितीयो भागः) ॥ अथ तृतीयमध्ययनम् ।। व्याख्यातं द्वितीयाध्ययनम् , सम्पति क्रमप्राप्तं तृतीयमध्ययनं प्रारभते, द्वितीयाध्ययने स्वसमयपरसमययोनिरूपणमभिहितम् । तथापि परसमयस्य दोषा उक्ताः, स्वसमयस्य गुणाश्च । प्रतिबुद्धपुरुषस्य संयमोत्थानेनोस्थितस्य कदाचिदनुकूलपतिकूलोपसर्गाः मादुर्भवेयुः । ते सोडव्या इति तृतीयाध्ययने कथ्यते । तस्येदमादिमं सूत्रम्-'सूरं मण्णइ' इत्यादि । मूलम्-सूरं मण्णइ अपाणं जाव जेयं न पस्सइं। जुझंतं दधम्माणं सिसुपालोव्व महारहं ॥१॥ छाया--शूरं मन्यत आत्मानं यावज्जेतारं न पश्यति । युद्ध यमानं दृढधर्माणं शिशुपाल इव महारथम् ॥१॥ तीसरे अध्ययन का प्रारंभद्वितीय अध्ययन की व्याख्या की जा चुकी । अब अनुक्रम से प्राप्त तृतीय अध्ययन आरंभ किया जाता है। द्वितीय अध्ययन में स्वसमय और परसमय का निरूपण किया है, और उसमें भी परसमय के दोष तथा स्वसमय के गुणों का कथन किया गया है। तीसरे अध्ययन में यह निरूपण करते हैं कि बोध सम्पन्न और संयम में परायण मुनि को कदा. चित् अनुकूल या प्रतिकूल उपसर्गों की प्राप्ति हो तो उन्हें समभाव पूर्वक ત્રીજા અધ્યયનને પ્રારંભ બીજા અધ્યયનનું વિવેચન પૂરું થયું હવે ત્રીજા અધ્યયનની શરૂઆત થાય છે. બીજા અધ્યયનમાં સ્વસમય અને પરસમયનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે અને તેમાં સ્વાસમયના ગુણે અને પરસમયના દોષ પ્રકટ કરવામાં આવ્યા છે. હવે આ ત્રીજા અધ્યયનમાં એ વાત પ્રકટ કરવામાં આવે છે કે બેધસંપન્ન અને સંયમમાં પરાયણ મુનિને ક્યારેક અનુકૂળ અને પ્રતિકૂળ ઉપસર્ગોની પ્રાપ્તિ For Private And Personal Use Only

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