Book Title: Sutra Samvedana Part 05
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ आयरिय-उवज्झाए सूत्र करें : 'तब मैं पापी था, अधर्मी था, आज भाव से धर्म का स्वीकार किया है एवं अपने हृदय में क्षमादि धर्म को प्रस्थापित किया है । अतः आप सभी के प्रति मैत्रीभाव को धारण करके आपसे अपने अपराध की माफी माँगता हूँ। आप कृपया मेरे अपराधों को क्षमा कर दीजिए और आपके भी अपराध को मैं क्षमा करके भूल जाता हूँ ।' इस प्रकार सूत्र की तीनों गाथाओं द्वारा गुणवान आत्माओं से, श्रमणसंघ से और समस्त जीव राशि से क्षमा माँगी जाती है । सभी जीवों को अपने समान मानने रूप हदय की विशालता और किसी के प्रति हुए अल्प कषाय के स्मरण रूप सूक्ष्मभाव यहाँ प्रकट होते हैं । इस सूत्र का उपयोग देवसिअ और राई प्रतिक्रमण में पाँचवें काउस्सग्ग आवश्यक के पूर्व होता है । उसका उल्लेख 'पंचवस्तु' आदि ग्रंथ में मिलता है । मूलसूत्र : आयरिय-उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुल-गणे अ। जे मे केइ कसाया, सब्वे तिविहेण खाममि ।।१।। सव्वस्स समणसंघस्स, भगवओ अंजलिं करिअ सीसे । सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि ।।२।। सव्वस्स जीवरासिस्स, भावओ धम्म-निहिअ-निय-चित्तो । सव् खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि ।।३।। पद-१२ गाथा-३ गुरु अक्षर-१९ लघुअक्षर-९१ कुल अक्षर-११० अन्वय सहित संस्कृत छाया और शब्दार्थ : आयरिय-उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुल-गणे अ। जे मे केइ कसाया, सब्वे तिविहेण खामेमि।।१।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 346