Book Title: Surya Sahasra Nam Sangraha Trayam
Author(s): Dharmdhurandharsuri
Publisher: Jain Vidya Shodh Samsthan

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Page 150
________________ श्रीसूर्यसहस्रनामसहत्रयम् "तमोऽराति:" 1032 इति / तम:-पैशून्यम्, तस्य अराति:-शत्रुः / 'कौटिल्याज्ञानपैशून्यविषयेषु भवेत् तमः // ' इति मेदिनिः // 1032 // "तमघ्नः" 1033 इति / तम:-राहुं हन्तीति तथा। 'राहो ध्वान्ते गुणे तम: // ' इत्यमरः // 1033 // “तिमिरापहः" 1034 इति / तिमिरं-नेत्ररोगविशेषः, तमपहन्तीति तथा // 1034|| "त्रिविक्रमः" 1035 इति / त्रिषु लोकेषु विक्रम:-सामर्थ्य यस्य स तथा // 1035 // "त्रिविष्टप:". 1036 इति / त्रिविष्टपं-भुवनत्रयम्, तज्जनकत्वात् तथा // 1036 // "त्रयः" 1037 इति / त्रिगुणात्मकत्वेन त्रिरूपत्वात् // 1038 // "त्रेता" 1038 इति / अग्नित्रितयात्मकत्वात् // 1038 // "त्रिकसंस्थित:" 1039 इति / त्रिक:-संस्थानविशेष:, तस्मिन् संस्थितः / त्रिकं-सत्त्वरजस्तमोलक्षणम्, तत्र संस्थित इति वा // 1039 / / "त्र्यक्षरः" 1040 इति / अकारोकारमकारात्मकः / त्रिभिःब्रह्मादिभिरक्षर इति वा // 1040 // "त्रिलोचनः" 1041 इति / त्रिषु सृष्टि-स्थिति-प्रलयेषु लोच्यते-दृश्यते जनैरिति स तथा / त्रिषु लोकेषु लोचनं-ज्ञानं यस्येति वा // 1041 // "त्रिलोकेश:" 1042 इति / त्रयाणां लोकानामीश:-स्वामी / यद्वा लोकते ज्ञानेन सर्वमिति लोकाः, ब्रह्म-विष्णु-महेश्वराः / त्रयश्च ते लोकाश्च तेषामीश्वरः तत्तत्कार्यप्रेरकत्वात् / / 1042 / / “तरणिः" 1043 इति / तीर्यते संसारसागरमिति तथा // 1043 / / . “त्र्यम्बकः" 1044 इति / त्रीणि अम्बकानि-चिह्नानि महदैश्वर्यसूचकानि 146

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