Book Title: Sursundari Charitra
Author(s): Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan

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Page 13
________________ (२) चरणनख समुदाय अभिमान में आकर केवल ज्ञान की स्पर्धा करता है, जिनके प्रणाम मात्र से निर्मल चरणनख में प्रतिबिम्ब पड़ने से अपने को ग्यारह गुण देखकर देवगण प्रसन्न होते हैं, देवेंद्र नरेंद्र वृंदों से वंदित, मोक्षगति को प्राप्त सिद्धार्थ नरेंद्र पुत्र जिनचंद्र उन चरम तीर्थङ्कर भगवान महावीर की मैं वंदना करता हूँ, दुर्जय कामदेवरूपी हाथियों का विदारण करने में श्रेष्ठ सिंह के समान शाश्वत शिव सुखों से युक्त सिद्धों को मैं मस्तक से नमस्कार करता हूँ, घने अज्ञान-रूप अंधकार को नष्ट करने में धीर सिद्धांतों की देशना देने में कुशल पंचविध आचार पालन में तत्पर आचार्यों को मैं मस्तक से वंदना करता हूँ, विषयसुख वासनारहित संसार के उच्छेद में लीन, सूत्रार्थ विशारद उपाध्यायों को मैं सतत नमस्कार करता हूँ, पंचमहाव्रतरूप दुर्वह पर्वत को उठाने में समर्थ गृहवासरूप जाल से मुक्त सकल साधुओं को मैं मस्तक झुकाकर नमन करता हूँ, जिसके चरणकमल को प्राप्त कर अज्ञानी जीव भी परम ज्ञान को प्राप्त होते हैं उस सरस्वती देवी को मैं प्रणाम करता हूँ, जिनकी कृपा से मेरे जैसा जडबुद्धि मनुष्य भी अनायास कथा करने में प्रवृत्त हो जाता है उन गुरुदेवों की मैं विशेष रूप से वंदना करता हूँ। ___इस प्रकार पूज्यों का प्रणाम कर लेने से सम्पूर्ण विघ्न समुदाय नष्ट हो जाने पर अब मैं संवेगकारिणी “ सुरसुंदरीचरित" नामक कथा कहूँगा, उसके पहले दुर्जनों की प्रार्थना कर लेता हूँ क्यों कि बिल्ली से चूहे की तरह कविगण उनसे डरते हैं, अथवा दुर्जन तो स्वभावतः दोष को ही पकड़ते हैं, प्रार्थना से भी उनकी दुर्जनता जा नहीं सकती । चंद्र जिस प्रकार रात्रि के संसर्ग

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